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(8) अभिभावकों में शैक्षिक जागरुकता का विकास
बालक के व्यक्तित्व-निर्माण में माता, पिता और गुरू - ये तीन उत्तम शिक्षक हैं। इनमें भी गुरु से अधिक महत्त्व माता-पिता का है। आधुनिक युग में बालक-बालिका की शिक्षा में अभिभावकों की रुचि भी बढ़ रही है। हर अभिभावक अपने बच्चों पर अधिकाधिक व्यय करके भी श्रेष्ठ शिक्षा देने का प्रयास कर रहा है। बच्चों की शिक्षा के प्रति अभिभावकों की बढ़ती हुई गम्भीरता (Sincerity) और सजगता (Awareness) भी शिक्षा के महत्त्व को इंगित करती है। (७) शिक्षा के विविध आयाम
वर्तमान युग शिक्षा के कई नए क्षेत्रों के उद्भव का युग है। वैज्ञानिक प्रगति ने कई अपरम्परागत शिक्षा क्षेत्रों को जन्म दिया। साथ ही किसी भी क्षेत्र में विशेषज्ञ की आवश्यकता भी नए क्षेत्रों के विकास का कारण बनी। शिक्षा के मुख्य आयाम निम्नलिखित हैं, जो पुनः शिक्षा की महत्ता को प्रकाशित करते हैं -
★ अभियांत्रिकी शिक्षा (Engineering) * कानूनी शिक्षा (Law) ★ तकनीकी शिक्षा (Technical)
★ कला शिक्षा (Art) ★ चिकित्सीय शिक्षा (Medical)
★ गृहविज्ञान शिक्षा (Home Science) ★ प्रबन्धन शिक्षा (Management)
★ शारीरिक शिक्षा (Physical) ★ वाणिज्य शिक्षा (Commerce) (10) विद्यार्थियों की बढ़ती अभिरुचि
शिक्षा के अनुकूल वातावरण में विद्यार्थियों का शिक्षा के प्रति समर्पण भी विचारणीय है। आखिर क्यों कोई बालक या बालिका अपने गाँव, नगर, जिला, प्रान्त या राष्ट्र को छोड़कर अध्ययन के लिए अपरिचित स्थानों पर भी जाने को सहर्ष तैयार हो जाता है? आखिर क्यों एक विद्यार्थी किसी प्रवेश परीक्षा की जबरदस्त प्रतिस्पर्धा का सामना करने के लिए युद्धस्तर पर तैयारी करता है? क्यों वह अपने जीवन के 20-25 वर्ष भी शिक्षा प्राप्ति के लिए व्यतीत कर देता है? ये सभी प्रश्न शिक्षा की बढ़ती लोकप्रियता को ही इंगित करते हैं।
इस प्रकार, यह निर्विवाद है कि वर्तमान युग में शिक्षा का महत्त्व निरन्तर तीव्र वेग से वृद्धिशील है। फिर भी यह विचारणीय है कि शिक्षा का महत्त्व बढ़ने पर भी क्या शिक्षा से जीवन-उद्देश्यों की प्राप्ति हो रही है। इस विचार की समीक्षा आगे की जाएगी और इसके आधार पर शिक्षा-प्रबन्धन की महती आवश्यकता प्रकट हो सकेगी, क्योंकि शिक्षा से भी अधिक महत्त्वपूर्ण शिक्षा प्रबन्धन है, जो हमें सम्यक् शिक्षा का मार्गदर्शन देता है।
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अध्याय 3: शिक्षा-प्रबन्धन
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