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माध्यमों से शिक्षा, जैसे - हिन्दी, अंग्रेजी आदि। इस वैविध्य के कारण चयन के अनेक विकल्प सामने रहते हैं, किन्तु व्यक्ति को योग्य निर्णय लेने में योग्य मार्गदर्शन की अपेक्षा रखनी होती है। (6) सामाजिक समानता पर आधारित शिक्षा - सामाजिक सद्भावना के विकास के लिए आधुनिक शिक्षा में यह व्यवस्था की जा रही है कि समाज का कोई भी घटक शिक्षा से वंचित न रह जाए। आशय यह है कि स्त्री-पुरूष, बालक-युवा-प्रौढ़, निर्धन-धनवान्, ग्रामीण-शहरी, उच्चकुलीन-निम्नकुलीन, व्यवसायी-सेवारत, स्वस्थ-विकलांग आदि सभी को शिक्षा प्राप्त करने का अवसर दिया जाए। यह एक योग्य निर्णय है, किन्तु इसके साथ वैयक्तिक एवं परिवेशीय भिन्नताओं पर ध्यान देना आवश्यक है। (7) शिक्षा में व्यापकता - आज शिक्षा को सर्वव्यापी बनाया जा रहा है। शिक्षा के विस्तार के लिए सरकारी और निजी संस्थाएँ अपना-अपना कर्त्तव्य बखूबी निभा रही हैं। प्रचार-प्रसार के लिए होर्डिंग्स, पेम्पलेट्स, अखबार, टी.वी., कम्प्यूटर आदि साधनों का प्रयोग किया जा रहा है। राजधानियों से लेकर छोटे-छोटे गाँवों में शिक्षा सुविधा दी जा रही है। किन्तु, इसका एक परिणाम यह हुआ है कि शिक्षा व्ययसाध्य होती जा रही है और यह सेवा का कार्य न रहकर, एक व्यवसाय बन गई है। (8) शिक्षा के विविध विषय - जैसे-जैसे लौकिक या सूचनात्मक ज्ञान का विकास हुआ, वैसे-वैसे शिक्षा के विषयों (Subjects) की गहनता, व्यापकता और विविधता भी बढ़ती गई। इससे विश्वविद्यालयों में अनेकानेक विषयों की शिक्षा दी जाने लगी है। कई स्थानों पर सर्टिफिकेट कोर्सेस के माध्यम से अध्ययन कराने की परम्परा भी चल रही है, किन्तु इन सबके होने पर भी मूल्यात्मक एवं आध्यात्मिक शिक्षा उपेक्षित ही है। (७) बहुमाध्यमवाली शिक्षा-पद्धति - आजकल 'मल्टीमीडिया' (बहुमाध्यम) शिक्षा का प्रचलन है, जिसमें दृश्य (Video) और श्रव्य (Audio) सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है। यह एक उचित कदम है, किन्तु इसके साथ विद्यार्थी वर्ग की रुचि की विविधता को ध्यान में रखना होगा। (10) लचीली शिक्षानीति (Flexible Educational Policy) - शिक्षाप्रणाली देश-काल-सापेक्ष परिवर्तनीय है। इसमें शैक्षणिक-विकास की दृष्टि से यह व्यवस्था दी गई है कि आधुनिक अनुसन्धानों से प्राप्त तथ्यों को सहजतया स्वीकार कर लिया जाए और साथ ही प्रचलित शिक्षा-व्यवस्था का मूल्यांकन कर उनमें आवश्यक संशोधन और संवर्द्धन भी कर लिया जाए। (11) शिक्षा का राष्ट्रीयकरण - शिक्षा व्यवस्था को संगठित करने के लिए राष्ट्रीयस्तर, प्रान्तीयस्तर और जिलास्तर पर विविध अभिकरणों (Agencies) की स्थापना की गई है। (12) अन्धविश्वास और अन्धरूढ़िरहित शिक्षा - आज की शिक्षा व्यवस्था तर्कपरक और तथ्यपरक है, जिसमें अन्धविश्वास और अन्धरूढ़ियों के लिए कोई स्थान नहीं है। इसे ही वैज्ञानिक
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अध्याय 3: शिक्षा-प्रबन्धन
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