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3.3 वर्तमान युग में शिक्षा का महत्त्व
प्राचीनकाल से ही मानवीय-चेतना के विकास के साथ-साथ 'शिक्षा' का महत्त्व भी बढ़ता गया और आज यह अपने चरम उत्कर्ष पर है। किसी अपेक्षा से आज शिक्षा का महत्त्व अनुत्तर और अपूर्व है। अब 'शिक्षा' पर किसी वर्गविशेष का अधिकार भी नहीं रहा। जनसामान्य में शिक्षा के प्रति विशेष अभिरुचि और समर्पण पैदा हो गया है। यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि रोटी, कपड़ा और मकान के पश्चात् 'शिक्षा' जीवन की चौथी बुनियादी आवश्यकता बन चुकी है। अतएव यह युग ज्ञान के विस्फोट (Knowledge Blast) का युग भी कहलाता है, जो निम्नलिखित बिन्दुओं से परिलक्षित होता है - (1) शिक्षा के संस्थानों (Institutes for Education) की वृद्धि
शिक्षा के विभिन्न संस्थानों की संख्यात्मक और गुणात्मक अभिवृद्धि भी शिक्षा के बढ़ते हुए महत्त्व को दर्शाती है। भारत में विश्वविद्यालयों की संख्या इस प्रकार रही है -
ई.सन् 1887 1921 1950_2007 संख्या 5 12 30 306
इसी प्रकार, भारत में शैक्षिक महत्त्व की अभिवृद्धि को निम्नलिखित सारणी के माध्यम से समझा जा सकता है - शिक्षा के - 1950-1951
361999-2000 विभाग विद्यालय विद्यार्थी शिक्षक-विद्यार्थी विद्यालय विद्यार्थी शिक्षक-विद्यार्थी अनुपात
अनुपात प्राथमिक 2:10.0001.91 करोड़ 1:24
6,42,000 11.36
1:43 (कक्षा 1-5)
करोड़ उच्च प्राथमिक 13,600 32 लाख 1:20
1,98,000 4.20 करोड़ 1:38 (कक्षा 6-8) शिक्षक संख्या
शिक्षक संख्या माध्यमिक
7,416 15 लाख -1.27 लाख 1,16,820 2.82 करोड़ 17.20 लाख (कक्षा 9-10) उच्च माध्यमिक (कक्षा 11-12) महाविद्यालय 750
11,089 1263 लाख 24,000
7417 लाख 3.42 लाख विश्वविद्यालय
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मध्य-युग में विद्यालयों के भवन आदि की स्थिति दयनीय होती थी, लेकिन आधुनिक युग की विद्याशालाएँ प्रायः नवीन उपकरणों एवं फर्नीचर से सुसज्जित होती हैं। छात्रावास, पुस्तकालय,
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अध्याय 3: शिक्षा-प्रबन्धन
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