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जैन आचारशास्त्र का लक्ष्य व्यक्ति के आध्यात्मिक एवं व्यावहारिक जीवन का सन्तुलित विकास करना है। जहाँ यह नैतिक आदर्शों / मूल्यों की सर्वोत्कृष्ट (परिपूर्ण) दशारूप मोक्ष को परिलक्षित करता है, वहीं यथार्थ के धरातल पर व्यक्ति के वर्त्तमान जीवन को सुव्यवस्थित करने का मार्गदर्शन भी देता है ।
इस जगत् में प्रत्येक प्राणी की जीवनशैली अपने आप में विशिष्ट (Unique) होती है। 20 अतः सबकी रुचि, भावना, अनुभूति, अनुक्रिया, बुद्धि, वाणी, व्यवहार, कार्यशैली इत्यादि भी भिन्न-भिन्न होती हैं। इससे व्यक्ति का व्यक्तित्व बड़ा जटिल हो जाता है। ऐसी स्थिति में जैनआचारशास्त्र या जैन जीवन - प्रबन्धन का यह विशेष दायित्व बनता है कि वह भिन्न-भिन्न स्तर के व्यक्तियों के लिए भिन्न-भिन्न आचार-व्यवहार का सापेक्षिक प्रावधान करे। इसी कारण जैनआचारशास्त्र या जैन जीवनशैली में व्यक्ति को अपनी भूमिकानुसार प्रवृत्ति करने का निर्देश दिया गया I
जीवन के आध्यात्मिक एवं व्यावहारिक विकास हेतु जैन जीवन- प्रबन्धन में अनेकानेक निर्देश / सूत्र दिए गए हैं, जो इस प्रकार हैं
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जैनआचारमीमांसा के उद्देश्य
व्यावहारिक जीवन के सन्दर्भ में
स्वस्थ एवं स्फूर्तिमय शारीरिक विकास के सूत्र ★ प्रासंगिक एवं प्रामाणिक वाणी - संप्रेषण के
सूत्र
सात्विक, शुद्ध एवं सुपाच्य आहार के सूत्र मन की शान्ति, एकाग्रता एवं प्रसन्नता के सूत्र समय की सजगता के सूत्र
★ धर्म-व्यवहार (शुभभाव) के प्रति समर्पण के सूत्र
नीतिमय धनोपार्जन के सूत्र
★ समरसतामय पारिवारिक जीवन के सूत्र
★ व्रतों से नियंत्रित व्यवहार के सूत्र
★ पर्यावरण-संरक्षण के सूत्र
विनय - विवेकयुक्त सुसंस्कारों के सूत्र
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आध्यात्मिक जीवन के सन्दर्भ में ★ सम्यक् साधना के सूत्र
★ इच्छा-मुक्ति से दुःख - विमुक्ति के सूत्र
कषाय-मुक्ति के सूत्र
शुभाशुभ भावों से ऊपर उठने के सूत्र
साक्षीभाव स्वरूप में स्थित होने के सूत्र
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अध्याय 2 : जैनदर्शन एवं जैनआचारशास्त्र में जीवन - प्रबन्धन
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