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अध्याय 3
शिक्षा-प्रबन्धन (Education Management)
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3.1 शिक्षा का स्वरूप 3.2 शिक्षा की सार्वकालिक महत्ता 3.3 वर्तमान युग में शिक्षा का महत्त्व 3.4 वर्तमान युग में शिक्षाप्रणाली की विशेषताएँ (गुण-दोष) 3.5 वर्तमान युग में शिक्षाप्रणाली की मुख्य कमियाँ एवं दुष्परिणाम 3.6 जैनआचारमीमांसा के आधार पर शिक्षा-प्रबन्धन
3.6.1 शिक्षा का उद्देश्य 3.6.2 सर्वांगीण शिक्षा के प्रकार 3.6.3 शिक्षा के विविध आयाम
3.6.4 सन्तुलित शिक्षा : एक आवश्यकता 3.7 शिक्षा-प्रबन्धन का प्रायोगिक पक्ष
3.7.1 शिक्षा की दो विधाएँ 3.7.2 शिक्षा के अंग 3.7.3 अनुप्रेक्षा से अनुभूति तक 3.7.4 यथार्थ बोध का क्रम 3.7.5 शब्द से भावार्थ तक 3.7.6 शिक्षा : जीवनभर चलने वाली सतत प्रक्रिया 3.7.7 शिक्षा-संस्कार की प्राचीन प्रक्रिया एवं वर्तमान में इसकी प्रासंगिकता 3.7.8 शिक्षा में अभिमान, सबसे बड़ी बाधा 3.7.9 विनीत एवं अविनीत शिक्षार्थी के लक्षण
3.7.10 शिक्षा-प्रबन्धन की कार्यविधि 3.8 निष्कर्ष 3.9 स्वमूल्यांकन एवं प्रश्नसूची (Self Assessment : A questionnaire)
सन्दर्भसूची
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