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(3) विभागों का पारस्परिक समन्वय - सभी विभागों के स्वतन्त्र प्रबन्धन-सिद्धान्त सुनिश्चित करने के साथ-साथ इन विभागों का परस्पर समन्वय भी एक आवश्यक कार्य है, क्योंकि जीवन का प्रत्येक पहलू एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। यहाँ पर विभागों की परस्पर-आश्रयता (Interdependency) एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता बन जाता है। जिस प्रकार एक मोती भले ही शोभनीय और मनोहर हो, किन्तु वह माला नहीं बन सकता, उसी प्रकार जीवन का कोई पहलू प्रबन्धित हो, किन्तु अन्यों की उपेक्षा हो तो समग्र जीवन-प्रबन्धन नहीं हो सकता। वस्तुतः, जीवन-प्रबन्धन तो सर्वांगीण जीवन-विकास में विश्वास रखता है।
उदाहरण – कोई-कोई व्यक्ति समय के अतिपाबन्द और कार्य के प्रति पूर्ण अनुशासित होते हैं, किन्तु थोड़ा-सा भी कार्य गलत हो जाए अथवा समय पर न हो पाए, तो वे अपने तनाव पर नियन्त्रण नहीं रख पाते। परिणामस्वरूप वे चिड़चिड़े, ईर्ष्यालु और कुण्ठाग्रस्त हो जाते हैं, इससे वे स्वयं भी अशान्त रहते हैं और दूसरों को भी अशान्त करते हैं। यह उदाहरण इस बात को दर्शाता है कि व्यक्ति का समय-प्रबन्धन का उद्देश्य तो पूरा हुआ, किन्तु मन-प्रबन्धन का नहीं। वस्तुतः, यहाँ जीवन-प्रबन्धन की समग्रता की आवश्यकता है। साररूप में कहा जा सकता है कि जीवन-प्रबन्धन स्वतन्त्रता (Independency) और परस्पर-आश्रयता (Interdependency) का सुन्दर समायोजन है। (4) जीवन-प्रबन्धन के विविध चरण : एक आवश्यक कर्तव्य - जीवन-प्रबन्धन की दिशा में चरण-दर-चरण ही आगे बढ़ना चाहिए, क्योंकि जीवन का समग्र प्रबन्धन यकायक करने की कल्पना करना केवल एक सुखद स्वप्न के समान है। सामान्य मनुष्य के लिए यह असम्भव है। एवरेस्ट की उत्तुंग चोटी तक पहुँचने का निर्णय और विश्वास तो क्षण भर में हो सकता है, लेकिन इसकी क्रियान्विति तो क्रमशः या शनैः-शनैः ही सम्भव है। जीवन-प्रबन्धन दीर्घकालिक और गाढ़ संस्कारों की विशुद्धि और निर्मलता का सकारात्मक , लेकिन एक कठिन और दुस्तर अभियान है। अतः इसमें धैर्य
और विवेक का समावेश अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। एक ही प्रयास में जीवन का आमूलचूल परिवर्तन असम्भव है। अतः हमें चाहिए कि हम जीवन-प्रबन्धन के अभियान को विविध चरणों या स्तरों में विभाजित कर दें, जिससे सरलतापूर्वक उद्देश्य की प्राप्ति हो सके।
जीवन-प्रबन्धक (Life Manager) के लिए आवश्यक है कि वह जीवन के प्रत्येक विभाग के प्रबन्धन की प्रक्रिया में सामान्य से विशेष, अल्प से अधिक एवं सरल से जटिल विषयों की ओर अग्रसर हो। इसके लिए उसे जीवन-प्रबन्धन को विविध चरणों में विभाजित करना चाहिए, जैसे -
अध्याय 1: जीवन-प्रबन्धन का पथ
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