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ममेयचन्द्रिका टीका श.३ उ.१ त्रायखिशकदेवद्धिविकुणाशक्तिनिरूपणम् ४५ व्याप्नुयुः, किन्तु न कदाचित् यथोक्तार्यसम्पादनेन व्यकुर्वियुः, विकुर्वन्ति विकुविष्यन्ति वेति महावीरस्वामिनोऽग्निभूतिम्पति कथनस्याशयमाह-'जाव-विकुनिस्संति' इति । ____भगवन् ! चमरस्य सोमयमवरुणादिलोकपालानां यदि पूर्वोक्तरीत्या ईदृशी महती समृद्धितते तर्हि एपां अग्रम हिगीणां कियती समृदिः कियञ्च विकुर्वितुं सामर्थ्य मिति पृच्छति-जइणं भंते ! चमरस्स इत्यादि ।
हे गौतम ! चमरस्य काली-रात्री-रत्नी-विद्युत्-मेघाभिधानाः पञ्चाग्रमहिप्यः दिव्यसमृद्धिशालिन्यः, महाप्रभावशालिन्यश्च सन्ति. तत्र निजनिजभवनानाम्, कुमार देवोंसे तथा असुरकुमार देवियों से द्वीप और समुद्रोंको भरना चाहें तो इतने दीप और समुद्रों को भर सकते हैं, परन्तु इस तरहसे उन्होने आज तक ऐसी विकुर्वणा नहीं की है और न वर्तमान में ये करते हैं और न आगे ऐसी विकुर्वणा ये कभी करेंगे ही। यही महावीर स्वामीके कथन के आशय को सूत्रकारने अग्निभूति के प्रति 'जाव विकुश्विस्संति' इस पाठ द्वारा प्रकट किया गया हैं अब अग्निभूति प्रभु से यह पूछते है कि हे भदन्त ! चमरके सोम यम वरुणं आदि लोकपालोंकी ऐसी बड़ी समृद्धि है तो उसकी जो अग्रमहिपियां है, उनकी समृद्धि कितनी है और कितनी उनकी विकुर्वणा करनेकी शक्ति है इसी बात को सूत्रकारने 'जहणं भंते ! चमरस्स' इत्यादि मूत्र पाठ दारा प्रकट किया है। अग्निभूति के इस प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रभु उनसे कहते हैं कि हे गौतम ? चमर की जो पांच पटरानियां है कि जिनके शुभ नाम काली, रात्री, रत्नी, विद्युत् और मेघा हैं वे दिव्य समृद्धि शालिनी हैं, महाप्रभावકરી નથી, વર્તમાનમાં કરતા નથી અને ભવિષ્યમાં કરશે પણ નહિં सर पात "जाव विकुन्चिस्संति" सूत्र | ४८ की छ
હવે ચમરેન્દ્રની પટરાણીઓની સૃદ્ધિ આદિ તથા વિકર્ષણ શકિત જાણવા માટે અગ્નિભૂતિ અણગાર મહાવીર પ્રભુને નીચે પ્રશ્ન પૂછે છે"जइणं भंते ! चमरस्स" या महन्त ने सभरेन्द्रना aslai Azel બધી દ્ધિ આદિથી યુકત છે અને આટલી બધી વિક્ર્વચ્છ શકિતશાળી છે, તે અમરેન્દ્રની પટ્ટરાણીઓની અદ્ધિ આદિ તથા વિક્ર્વણ શકિત કેવી છે ? :
• ઉત્તર-અસુરેન્દ્ર ચમરની પાંચ પટ્ટરાણીઓનાં નામ આ પ્રમાણે છે-કાલી, રાત્રી, રત્ની, વિદ્યુત અને મેઘા. તે પાંચે પટ્ટરાણીઓ દિવ્ય સમૃદ્ધિવાળી છે, મહાપ્રભા