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भगवती
अन्यत् तदेव । तदेवं भदन्त । तदेव भदन्त । इति तृतीयो गोतमो वायुभूति रनगरः श्रमण भगवन्तं महावीरं वन्दते, नमस्यति यावत्-विहरति । ततः श्रमण भगवान महावीरोऽन्यदा कदाचिद मोकायाः नगर्याः नन्दनात् चैपात् प्रतिनिष्क्रामति प्रतिनिष्क्रम्य बहिर्जनपदविहारं विहरति ।। सू० १६ ।।
जा सकते है, इसी तरह से प्राणत देवलोक में भी जानना चाहिये, परन्तु यहाँ पर ३२पत्तीस जंबू द्वीपों को पूर्णरूप से भर सकनेकी विकर्षणा शक्ति है । इसी तरह से अच्युत देवलोक में भी जानना चाहियेपरन्तु यहां पर जो विकुर्वणा शक्ति है उसके द्वारा कुछ अधिक ३२ जंबूद्वीप भरे जा सकते हैं। (अण्णं तं चैव चाकी का और सब कथन पहिले के जैसा ही समझना चाहिये । (सेवं भंते !) सेवं भंते ! ति तच्चे गोयमे वायुभूई अणगारे समणं भगवं महावीरं वंदइ, नमसर, जाव विहरइ ) इस प्रकार भगवान महावीर के मुखारविन्द से सुनकर तृतीय गौतम वायुभूतिने उनसे कहा कि हे देवानुमिय ! आपने जैसा प्रतिपादन किया हैं वह ऐसा ही है है भदन्त ! वह ऐसा ही है इस प्रकार से कह कर उन तृतीय गणधर वायुभूति ने उन श्रमण भगवान् महावीर को वंदना नमस्कार किया यावत वे फिर अपने स्थान पर विराज गये । ( तरणं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाई मोगाओ नगरीओ नंदणाओ चेहयाओ पडिनिक्खम, पडिनिक्खमित्ता રૂપે વડે સેાળ જબુદ્વીપ કરતાં વધુ જગ્યાને ભરી શકે છે. પ્રાળુત દેવલેાકમાં પણ એજ પ્રમાણે સમજવું. પણ તેઓ તેમની વિધ્રુવ ાથી ઉત્પન્ન કરેલાં રૂપે વર્ડ ૩૨ ખત્રીસ જંબુદ્ધોપાને ભરી શકવાને સમર્થ છે. અચ્યુત દેવલેાકના દેવો તેમની વિધ્રુવ ણાશક્તિથી નિર્મિત વિવિધ રૂપો વડે ૩૨ છત્રીસ જબુદ્રીપા કરતાં પણ વધારે જગ્યાને ભરી શકવાને समर्थ छे. (अण्णं तं चेव) जाडीनुं समस्त उथन भागण उद्या प्रमाणे सम. (सेवं भंते ! सेवं भंते! त्ति तच्चे गोयमे वायुभूई अणगारे समणं भगवं महावीरं वंदर, नर्मस जाव विहरइ) भगवान महावीर स्वाभीनां भुखारविन्दृथी આ પ્રકારનાં શબ્દો સાંભળીને ત્રીજા ગણધર વાયુભૂતિએ તેમને કહ્યુ “હુ ભદ્રંન્ત! આપે પ્રતિપાદિત કરેલ હકીકત તદ્દન સાચી છે. આપની વાત થયા છે. તેમાં શકાને સ્થાન જ નથી.” ત્યારષાદ ભગવાન મહાવીરને વણા નમસ્કાર કરીને તેએા तेभनी ४भ्योि मेसी गया. (तरणं समणे भगवं महावीरे अभया कयाई मोयाओ नयरीओ नंदणाओ चेइयाओ पंडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया