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देवेन्द्रस्य 'देवरण्णो देवराजस्य 'वे समणस्स, बेगमवस्य 'महारज्यो महाराजस्य 'अन्नापाई' अज्ञानानि ज्ञानाविषयी भूतानि 'दि' महानि
प पक्षाविषयी भूतानि, 'भनुभा' अश्रुतानि, भक्नामोचरीकृतागि, 'अस्मा' अस्मृतानि विस्मृतानि 'अविष्णायार' अविज्ञातानि अनुमानाद्यनिपी भूतानि सन्ति, न केवल तानि वैश्रमणस्यैव अविज्ञातानि न, अपितु तत्परि चारभूतानामपि देवानामपि न तानि अविज्ञातानि इत्याह- 'तेसि वा बेसम्म रूपया आदि पूर्वोक्त द्रव्य इन उपर्युक्त स्थानोंमें छिपाकर या जमीनमें गाढकर रखी हुई हो ऐसी 'ताह' वह द्रव्य 'देविंदस्स देव राजस्स सस्स, देवेन्द्र देवराज शकके 'वेसमणस्स महारष्णो' लोकपाल वेश्रमण महाराज से 'न अभायार' अज्ञात नहीं हो सकती है अर्थात् उनके ज्ञान के अविषयभूत नहीं होते है 'अदिडाई' अदृष्ट चाक्षुप प्रत्यक्ष ज्ञान के द्वारा अज्ञेय नहीं होते है 'असुयाइ' भबने न्द्रियजन्य ज्ञान के द्वारा अविषयीभूत नहीं होती है 'अस्सुयाइ' स्मरणज्ञानके द्वारा नहीं जाती हुई नहीं होती है, 'अविष्णायाइ' अनुमान द्वारा अननुमित नहीं होती है अर्थात् वैश्रमण महाराज ऐसी पूर्वोक्त वस्तुओंको जानते हैं, देखते हैं. श्रवणज्ञान से उन्हें सुनते हैं, स्मरणज्ञानसे उन्हें अपनी स्मृति में रखते हैं, और वैश्रमण महाराज ही इन पूर्वोक्त स्थानों में बहुत पहिले से रखी हुई इन पूर्वोक रूप्यक आदि वस्तुओंको जानसे आदि हों मो बात नहीं है किन्तु तेसिंबा
'वा' ते द्रव्यराशि 'देविंदस्स देवरामस्स सक्क्स्स' देवेन्द्र देवराम સના 'वेसमणस्स महारष्णो' माथा ठप श्रनुभाशी 'न बन्नायाइ' होई शक्ती नमी भेटही है तेरा तेमनी महार होती नही, 'अविद्वाह' अदृष्ट होती नथी बेटी है तेा तेन भी 'असुयाई' अद्भुत होती नमीमलेन्द्रियजन्य ज्ञानद्वारा अविषयभूत होती नथी 'अस्पाई' मन द्वारा अविषयभूत होती नथी, 'भविष्याबाई' अनुमान ज्ञान द्वारा भवियां नमी કહેનાનું તાપમ એ છે કે નૈમમણુ મહારાજ પૂત વસ્તુનેને બધું છે એ ૭, શ્રવણ જ્ઞાનથી તેમના વિષે સાંભળે છે, મરવુ જ્ઞાનથી યાદ રાખે છે અને તેમને નિષે સતત અણકારી રાખતા ય છે. વૈશમણુ મહાશજજ ક્તિ સ્થાનામા સમી भूसी शशिने नाबे मे तेर्सि वा बेसममकाइयान
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