Book Title: Bhagwati Sutra Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 1200
________________ ९१२ - . . . . ममस्तीपणे लेस्सा, नीलठेरसं पप्प तारूवत्ताए, तावण्णताए, तागंपत्ताए, तारसपाए, ताफासत्ताए भुजो भन्नो परिणमइ' तद्गन्यतया, तसतया, तपर्वतया, भूयो भूयः परिणमति ? इन्त, गौतम ! कृप्णलेश्या नीलोइयां प्राप्य तद्रूप तया, तदुवर्णतया, तद्गन्धतया, नद्रसतया, तत्स्पर्शनया, भूयो भूयः परिणमति, 'अर्थात् कृष्णलेश्यापरिणतो जीयो यदा नीललेल्यायोग्यानि द्रव्याणि पर्या दाय कालं करोति तदा नीललेश्यापरिणत उत्पद्यते, उक्तश-' जस्लेसाई दवाई परिआइता कालं करेइ, तल्लेसे उपयजई' यल्लेश्यानि द्रव्याणि पर्यादाय कालं करोति तल्लेश्य उत्पद्यते' इति । ततो गौतमः पृच्छति-'से है कि इस बार गायोक्त पदोंका विशदीकरण प्रज्ञापनाके चतुर्थ उहे. शकमें हुआ है इसलिये इन बारीकी समाप्ति तकही इस उद्देशकको ग्रहण करना चाहिये । परिणाम संबंधी कथनका अभिप्राय इस प्रकार से है गौतम प्रभुसे पूछ रहे हैं कि हे भदन्त ! कृष्णलेश्या नीललेश्या को प्राप्तकर क्या उसके जैसी वर्णवाली, गंधवाली; रसवाली बार२ होती रहती है ? तब इसका उत्तर देते हुए प्रभु गौतमसे कहते हैं कि गौतम! हां, कृष्णलेश्या नीललेश्याके रूपमें जब बदल जाती है तो वह उसके जैसे वर्णवाली, उसके जैसे गंधवाली, और उसके जैसे रसवाली चार२ होती रहती है । तात्पर्य कहनेका यह है कि जय कृष्णलेश्याके परिणामवाला जीव नीललेश्याके योग्य द्रव्योंको ग्रहण करके मरता है, तब वह नीललेश्याके परिणामवाला होकर ही अन्यत्र उत्पन्न होता है । क्यों कि यह सिद्धान्त है कि 'जल्लेस्साई दव्वाई परियाइत्ता कालं करेइ, तल्लेसे उववजई' 'जीव जिस लेश्याके (આ કારગાથાની) સમાપ્તિ પર્યન્તનું જ કથન અહીં ગ્રહણ કરવું જોઈએ. પરિણામ વિષયક કથન નીચે પ્રમાણે છે ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને પૂછે છે- “હે ભદન્ત! કૃષ્ણલેશ્યા નલલેસ્થાને સંયોગ પામીને તેના જેવા વર્ણવાળી, તેના જેવી ગંધવાળી અને તેના જેવા રસવાળી मनती हे छ?' ઉત્તર– “હે ગૌતમ! હા, એવું જ બને છે. કૃષ્ણલેશ્યા જ્યારે નીલલેસ્થારૂપે પલટાઇ જાય છે, ત્યારે તે તેના જેવા વર્ણવાળી, તેના જેવી ગંધવાળી અને તેના જેવા રસવાળી થતી રહે છે– આ કથનને ભાવાર્થ નીચે પ્રમાણે છે- જે કમલેશ્યાના પરિણામવાળે જીવ નીલેશ્યાને યોગ્ય દ્રવ્યને ગ્રહણ કરીને મરે છે, તે તે નીલેશ્યાના पराभवाणी मनीन. मन्यत्र भन्न थाय छ- सवा सिद्धांत छे .. जललेसाई दवाई परियाइत्ता कालं करेइ, तल्लेसे उववज्जई' श्याना द्रव्यन अy

Loading...

Page Navigation
1 ... 1198 1199 1200 1201 1202 1203 1204 1205 1206 1207 1208 1209 1210 1211 1212 1213 1214