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प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ४ उ. १० सू. १ देश्यापरिणामनिरूपणम् मदेशावगाढा, वर्गणाविषये च कृष्णलेरयादियोग्यद्रव्यवर्गगाः अनन्ताः औदारिकादिवर्गणावत्, स्थानविषये च तारतम्येन विचित्राव्यवसायनिबन्धनानि असंख्येयानि कृष्णादिद्रव्याणि अध्यवसायस्थानानामसंख्यातत्वात्, बेश्यास्थानानामल्पबहुत्वं वाच्यम् | नो 'पपुगिने । कण्ड लेसाठाणा णं जाब - सुक्कलेसाठाणाण य जम्नगाणं इत्या पट्टयाए पट्टयाए कयरे कमरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा, तुल्ला वा विसेसाहिया चा ? गोयमा ! सव्वत्यांचा महागा कामा असंख्यात (क्षेत्र) प्रदेशो में है । औदारिकादिक वर्गणाओं की मर कृष्णलेश्या आदि के योग्य द्रव्यवर्गणाएं अनन्न है। नग्नम आदि रूप से विचित्र बने हुए ऐसे अध्यवसायों के कारण कृष्णादिय भी तरतमादिरूप से असंख्यात है। क्योंकि अध्यवसाय स्थान असण्याम होते है । तात्पर्य कहनेका यह है कि जब अध्यवसायेोष ध्यान असंग्राम है तो अध्यवसाय भी असंख्यात ही है । और जम असंख्यात है तो इन असंख्यात अध्यवसायी के कारणवृत कृष्णादि द्रव्य भी उनके ठरतमादिरूप को लेकर असंख्यात है। गाय के स्थानों का अल्पबहुत्व इस प्रकार से हैं-म में गन हे भदन्त ! कृष्णलेश्या के जघन्यस्थान में और गायन जघन्यस्थनों में द्रव्यार्थ रूप से, प्रदेशार्थमप या दोनों रूप से कौन स्थान किन स्थानों की अपेक्षा आ कौन स्थान किन स्थानों को अपेक्षा में यम है, फोन न किम स्थानों की अपेक्षा समान हैं, तथा फोन में स्थान दिन यानी श्री
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. मोहारि याहि वर्गागोनी ने महि
अनंत छे. तरतभ यहि ३ये विभित्र मनवाया ह द्रव्य या तरतम दिये गाना होय छे. तेनुं तात्पर्य मे छे छे को गाना या क्षण, 41
अध्यवसाय पशु असंख्यात सोय
असंख्यात अध्यवसायोना अशुभूत होती अपेक्षाये असंख्यात होय छे सेश्याधाना - गौतम खाभी भहावीर प्रभुने - sent या धा पर्यन्तनी श्यामानां धन्य का प्रबंध