________________
८७८
शब्दपरिणामब
"
भगवद (माशुमपरिणाम इत्यर्थः) ततः परिधिधि पृच्छा ? गौतम ! विविध महत, तद्यथा-मुरूपपरिणामः परिणामम रातो प्राणेन्द्रियविषये पृच्छा १ गौतम । द्विविधः शप्त तथा सुरभिमन्य परिणामोदुरभिगभ परिणामध, एवं जिवेन्द्रियविषये पृच्छा ! गौतम ! द्विविध मलप्त तद्यथा मुरसपरिणामः, दूरस' परिणामथ तथा 'स्पर्धेन्द्रव विपये पृच्छा? द्विविध महतः सुखस्पर्शपरिणाम, दु खस्पर्शपरिणामच कषिपु 'इदिय विसर, उच्चाषय - सुमिणो' इति दृश्यते ' सुन्द्रियविषय, उच्चावच दो प्रकारका होता है- एक शुभ शब्दरूप और दूसरा अशुभ शब्दरूप इसी प्रकार से उन्होंने घरा चक्षुइन्द्रियके विषयमें भी प्रश्न किया है और इसका उत्तर प्रभुने 'चक्षुरिन्द्रिय के विषयभूत हुए रूपका परिणाम- शुभ और अशुभरूप दो प्रकार से होता है' ऐसा कहा है । नासिका इन्द्रियके विषयमें भी ऐसा ही प्रश्न प्रभुसे उन्होंने पूछा है और इसके उत्तर में प्रभुने उनसे 'विविध प्रशप्स तथथा सुरभिगन्धपरिणाम दुरभिगंधपरिणाम ' ऐसा कहा है अर्थात् प्राणेन्द्रिय के विषयभूत कहे गये गध गुणका परिणाम सुरभि विरूपसे और दुरभिगघरूप से होता है जिहा इन्द्रिय के विषयभूत रस गुणका परिणाम भी इस प्रकारसे दो प्रकारका सुरसरूप परि णाम और दूरस - घूरेरसरूप परिणाम इस तरह दो तरहका प्रकट किया गया है । स्पर्शन इन्द्रियके विपयभूत स्पर्शन गुणमें भी इसी प्रकारसे प्रभ किया गया है और प्रसुने इसके उत्तर में उन्होंसे ऐसा
પ્રમાણે છે- ભાષાવ રામનું પરિણમન બે પ્રકારનું હોય છે– (૧) ચુષ શબ્દપ પરિણમન અને (૨) અલ શબ્દરૂપ પરિણમન. એ જ પ્રકારને પ્રશ્ન ચક્ષુ ઇન્દ્રિયના વિષયમા પણ ગૌતમ પૂછયેા છે અને મહાવીર પ્રભુએ તેને મા પ્રમાણે ઉત્તર ભાગ્યે છે ચક્ષુમિનિય દ્વારા વિષયમૃત અનેતા રૂપનું પરિણામ એ પ્રકારનું હોય છે–શુશ અને અમુલ.
જ્ઞપ્લેન્દ્રિયના વિષયમાં પશુ એવાજ પ્રશ્ન પૂછવામા આવ્યે છે અને મહાવીર तेन प्रभात्तर'विषमतः तथमा सुरभिगन्धपरिणाम दुरभिगन्धपरिणामब' ब्राझेन्द्रियनी विषयभूत गोरना में अहारना પરિણામ કહ્યા છે– સુરભિગમપ પરિણામ અને કુભંગરૂપ પિરણામ. સનેન્દ્રિયના વિષયભૂત રસ ગુણના પરિણામ પક્ષ બે પ્રકારના કહ્યા છે. રસરૂપ પરિણામ અને રસ (ખાખ સ) ૨૫ પરિણામ સ્પન ઈન્દ્રિયના વિષયભૂત શ ગુણના પરિણામ