Book Title: Bhagwati Sutra Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
अथ नवमोद्देशकः प्रारभ्यते
|| नारकवक्तव्यता ॥
मूलम् - 'नेरइए णं भंते ! नेरइएसु उववजड़ अनेरड़ए नेरsee उars ? पण्णत्रणाए लेस्साए तइओ उद्देसओ भाणियन्त्रो जाव-नाणाइ ॥ सू० १ ॥
छाया - नैरयिकः खलु भदन्त ! नैरयिकेषु उपपद्यते ?' अनैरयिको नैरयिकेषु उपपद्यते ? प्रज्ञापनायाः लेश्यापदे तृतीयउद्देशको भणितव्यः यावत् - ज्ञानानि ॥ मू० १ ॥
टीका-पूर्वस्मिन् उद्देशके देववक्तव्यता प्रतिपादिता, इति देवशरीरसाधर्म्यात् नारकवक्तव्यतां प्रस्तौति - 'नेरपणं भंते ।" इत्यादि । गौतमः चतुर्थशतक नौवां उद्देशक प्रारंभ
नारकवक्तव्यता
'नेरहए णं भंते ! नेरइएस उववज्जह' इत्यादि । सूत्रार्थ - (नेर णं भंते! नेरह उववज्जइ, अनेरइए नेरइएस उववज्जइ) हे भदन्त ! नैरयिक जीव होता है वही नरकमें उत्पन्न होता है, कि अनैरयिक जीव नैरक में उत्पन्न होता है ? (गोयमा) हे गौतम ! (पण्णवणाए लेस्साए तईओ - उद्देसओ भाणि
वो जाव नाह) प्रज्ञापना सूत्रमें कथित लेश्यापदका तृतीय उद्देशक यहां पर इस प्रश्नके समाधान निमित्त यावत् ज्ञानपद तक कहना चाहिये ||
टीकार्य पूर्व उद्देशक में देववक्तव्यता कही जा चुकी है अब इस नौमें उद्देश में नारकी संबंधी कथन करना है कारण कि जिस ચેાથા શતકના નવા ઉદ્દેશક પ્રારંભનારકાની વતવ્યતા'नेर एणं भंते । नेरइएमु उववज्जइ' धत्याहि
सूत्रार्थ - (नेरहएछु णं भंते । नेरहएस उववज्जह, अनेरइए नेरहए उववज्जइ ? ) हे सहन्त! नार वो नारोमा उत्पन्न थाय छे, अनार छवी नारोभां उत्पन्न थाय छे ? (गोयमा !) हे गौतम! (पण्णत्रणाए लेस्सापए तुईओ उद्देसओ भाणियन्त्रो जाव नाणाइ) प्रज्ञापनासूत्रमा उडे ત્રીજે ઉચ્ચક, જ્ઞાનપદ પર્યન્ત, આ પ્રશ્નના સમાધાન માટે કહેવા જોઇએ.
देश्यापही
ટીકા — પહેલાના ઉદ્દેશમાં દેવેનું નિરૂપણુ કરાયુ. હવે આ નવમાં

Page Navigation
1 ... 1185 1186 1187 1188 1189 1190 1191 1192 1193 1194 1195 1196 1197 1198 1199 1200 1201 1202 1203 1204 1205 1206 1207 1208 1209 1210 1211 1212 1213 1214