Book Title: Bhagwati Sutra Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 1160
________________ ८८२ . ... .. ... .. . . भगवतीक्षो टीका-नवमोद्देशकै इन्द्रियाणि उतानि-तवन्तत्र देवा इति पषद् भूतदेववक्तव्यता दशमोदेशके मोच्यते-रापगि जा' स्यादि । रामपई यावत्-गौतमः 'एवम्' यक्ष्यमाणप्रकारेण 'व्यासी' अवादीत : यावरकरणात् 'नगरे स्वामी समवस्तः, पर्पद निर्गन्छति, गिता पर्पत, पर्युपासीनः इति समावम् । 'चमत्स्स णं भंते ! हे भदन्त । चमरस्य खलु 'अमुरिंदस्स' अमुरे न्द्रस्य 'अमररण्यो ' अवरराजस्य 'कइपरिसाओ कति पर्पदः 'पणत्ताओ?' चंडा जाया) शमिका-शमिता चंडा और जाता (एवं जहाणूपुवीए जावं अच्युओ कप्पो-सेवं भंते ! सेवं भंते !' ति) इस प्रकार से क्रमपूर्वक 'यावत् अच्युत 'कल्प तक जानना चाहिये। हे भदन्त ! आपके द्वारा कहा हुआ यह विषय सर्वथा सत्य ही है. सर्वधा सत्य ही है इस प्रकार का फर यावत् गौतम अपने स्थान पर विराजे ॥. टीकार्थ-नौमे "उद्देशकमें इन्द्रियोंका प्रतिपादन किया गया है इन्द्रियां देवोंके भी होती हैं। अतः पर्पभूत देवोंकी वक्तव्यता इस दशवें उद्देशकमें सूत्रकार द्वारा प्रतिपादित की जा रही है । यहां पर इस प्रकारसे संबंध लगालेना चाहिये-राजगृह नगरमें . महावीरस्वामीका समवसरण हुआ अपने२ स्थानसे पर्षद् मनुष्योंका समूह प्रभुकी देशना सुननेके लिये उनके पास गया-प्रभुने उन्हें धर्मका उपदेश दिया-धर्मका उपदेश सुनकर जनता अपने स्थान पर पीछे वापिस चली गई। इतने में प्रभुकी पर्यपासना करते हुए गोतमने प्रभुसे पूछा कि हे भदन्त ! 'असुरिंदस्स असुररण्णो' असुरेन्द्रं असु (समिया, चंडा, जाया) भिता, या भने त छ- (एवं जहाणुपुत्रीए जाव अच्चुओ कप्पो सेवं भंतें! सेवं भंते ! ति .. . प्रभाग : मनुने અમૃત ક૫ પર્યત સમજવું. ગૌતમ સ્વામી કહે છે- “હે ભદત! આપે આ વિષયનું જે પ્રતિપાદન કર્યું તે સર્વથા સત્ય છે. હે ભદત! આપે જે કહ્યું તે યથાર્થ છે,' એમ કહીને તેઓ તેમને સ્થાને બેસી ગયા. , શકાઈ... નવમાં ઉદશકમાં ઈન્દ્રિયેનું પ્રતિપાદન કરાયું. દેવોને પણ ઈન્દ્રિયે હોય છે. તેથી આ સૂત્રમાં, પરિષદમાં ગયેલા દેવોનું વર્ણન સૂત્રકારે કર્યું છે. શરૂઆતમાં નીચેનો સૂત્રપાઠ ગ્રહણ કરવ- રાજગુડ નગરમાં મહાવીર સ્વામીનું આગમન થયું. તેમને ઉપદેશ સાંભળવાને માટે પરિષદ (જનસમૂહ) નીકળી. પ્રભુએ તેમને પપદેશ કર્યો, ધર્મોપદેશ સાંભળીને પરિષદ, પાછી ફરી. ત્યાર બાદ મહાવીર પ્રભુને વંદ नभ७२ शन गौतम सामीमे विनयपूर्व ५७ - 3 मह-त! 'अमरिंदस्स

Loading...

Page Navigation
1 ... 1158 1159 1160 1161 1162 1163 1164 1165 1166 1167 1168 1169 1170 1171 1172 1173 1174 1175 1176 1177 1178 1179 1180 1181 1182 1183 1184 1185 1186 1187 1188 1189 1190 1191 1192 1193 1194 1195 1196 1197 1198 1199 1200 1201 1202 1203 1204 1205 1206 1207 1208 1209 1210 1211 1212 1213 1214