Book Title: Bhagwati Sutra Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1179
________________ • प्रमेयचन्द्रिका टी. श. ४ उ. १ - ८ . १ देवसम्बन्धिविमानादिस्वरूपनिरूपणम् ८९७. rea' महाविमानस्य 'पुरस्थिमेणं' पौरस्त्येन पूर्वदिग्भागे 'तिरियमसंखेज्जाई' तिर्यग् असंख्येयानि 'जोयणसहस्साड़' योजनसहस्राणि 'बीई इत्ता' व्यतित्रज्य अतिक्रम्य 'एत्थ णं' अत्र खलु 'ईसाणस्स देविंदस्स देवरपणो' ईशानस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य 'सोमस्स महारण्णो' सोमस्य महाराजस्य 'सुमणे णामं ' सुमनो नाम 'महाविमाणे' महाविमानम् 'पण्णत्ते' प्रज्ञप्तम्, 'अद्भुतेरसजोयणसयसहस्साई ' अत्रयोदशयोजनशतसहस्राणि सार्धद्वादशलक्षयोजनानि 'जहा सक्कस् वतन्त्रया तइअसये' यथा शक्रस्य वक्तव्यता तृतीयशतके 'तहा ईसाणस्स वि जाव - अचणिआ. समत्ता' तथा ईशानस्यापि यावत् अर्चनिका समाप्ता तथाच तृतीयशतकीय शक्रवक्तव्यतानुसारम् ' सार्धद्वादशलक्षयोज 'तस्सणं' उस 'ईसाणावडे मयस्स' ईशानावतंसक 'महाचिमाणस्स' महाविमान की 'पुरत्थमेणं' पूर्वदिग्विभाग में 'तिरियमसंखेजाई' तिरछे असंख्यात 'जोयणमहस्साई' योजन हजार अर्थात्-असंख्यात हजार योजनोतक 'वीवइत्ता' आगे निकल जाने पर 'एत्यण' जो स्थान आता है ठीक इसी स्थान पर 'ईसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो' देवेंन्द्र देवराज ईशान के ' सोमस्स महारण्णो' लोकपाल सोम महाराज का 'सुमणे णामं ' सुमन नामका 'महाविमाणे' महाविमान 'पण्णत्ते' कहा गया है । 'अद्धतेरस जोयणस्यसहस्साई' इस विमानकी लंबाई और चौडाई १२ ॥ लाख योजन की है । 'जहा सकस वत्तवया तयसए तहा ईसाणस्स वि जाव अच्चणिया सम्मत्ता' इस सूत्रपाठ द्वारा यह समझाया गया है कि जिस प्रकार के तृतीयशतक में शक्र के लोकपाल सोम महाराज के संध्यामभ विमान की लंबाई चौडाइ १२ || लाख योजन की कही गई है और परिधि का विस्तार ३९२२८४८ योजन महाविभाननी पूर्व दिशामा 'तिरियमसंखेज्जाई जीयणसहस्साई तिरछा દિશામાં असंख्यात हत्तर योन्जन प्रभा अतरने 'वीवत्ता' पार ४२, 'एत्थ णं ? स्थान आवे छे, मे स्थान पर 'ईसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो' हवेन्द्र, हेवरान ईशानना 'सोमस्त महारण्णो' सोम्यास सोम महाराजनुं 'मुमणे णामं' सुभन नामनुं 'महाविमाणे पण्णत्ते' महाविभान छे. 'अद्धतेरस जोयणसयसहस्साई ' તે વિમાનની લંબાઇ અને પહેાળાઇ ૧રા! લાખ ચે!જનની છે. 'जहा सकस्स वतन्त्रया तइयसए तहा ईसाणस्स वि जाव अच्चणिया सम्मत्ता' या सूत्रा ભાવાથ નીચે પ્રમાણે છે- ત્રીજા શતકમાં શક્રેન્દ્રના સામ લેાકપાલના સભ્યાપ્રભ વિમાનની લખાઇ–પહેાળાઇ ૧૨ા લાખ ચેાજનની કહી છે, અને પરિધિ ૩૫૨૮૪૮ '

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