Book Title: Bhagwati Sutra Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 1166
________________ भगरतीयले तान्त देवेन्द्राणां प्रत्येक तिसः पर्षदो भवन्ति नामतः, देवांदिमानवास्थितिमानतथ --किविभेदवत्यो - जीवाभिगमसूत्राद्-विज्ञेयान-कागौतमो भगवदवाक्यं प्रमाणयमाह-' सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति । तदेवं भदन्त । तदेवं भदन्त । इति' हे भदन्त । भवदुक्तं सर्व सत्यमेवेति ॥२०१॥ इति-श्री-विश्वविख्यात-जगहल्लभ-प्रसिद्धवाचक पनदशभाषाकलित ललित... ' फलापालापक-प्रविचंद गद्यपधनैकग्रंथनिर्मापक वादिमानमर्दक श्री. शाहच्छत्रपति कोल्हापुरराज पदन "जैनशास्त्राचार्य" पदभूषित . ' कोल्हापुररानं गुरु-पालब्रह्मचारी-जैनशास्त्राचार्य-जैन धर्मदिवाकर-पूज्य श्री घासीलालप्रतिविरचितायां । • "धी भगवतीमत्रस्य" प्रमेयचन्द्रिकाख्यायां व्याख्यायां तृतीयशतकं सम्पूर्णम् ॥३-१०॥ इन सभाओंके नाम, इनके सभासद देव और देवियोंकी संख्या तथा इन सबकी आयुका प्रमाण इन सबमें कहीं२ भिन्नता है यह सयं चिपयं जीवाभिंगंमसूत्रसे जाना जा सकता है। यहां जो 'जहाणुपुच्चीए जाच पद आया है उससे यही बात समझाई गई है, . कि इस सूत्र द्वारा केवल चमरका ही वर्णन किया है सो, इस वर्णन के अतिरिक्त जो भवनपतिके इंन्द्र, वानव्यन्तरोंके इन्द्र, ज्योतिष्कदेवों के इन्द्रं, तथा सौधर्मकल्पसे लेकर अच्युतकल्पतकके इन्द्र हैं उन, संघकी प्रत्येककी तीन तीन सभाएँ । इन सबके नाममें, देवादिकों . के प्रमाण में और स्थिति के प्रमाण में और स्थितिके प्रमाणमें जो कुछ२. अन्तर है वह सर्वजीवाभिगम सूत्रसे जानलेना चाहिये । अन्त. ત્રણ સભાએ સમજવી. તે સંભાઓનાં નામ, તેમના સભાસદ દેવોની અને દેવીઓની સંખ્યા, તથા તેમના આયુના પ્રમાણમાં જે કંઈ ભિન્નતા છે, તે જીવાભિગમસૂત્રની भायी one Aय छ. मी जहाणुपुबीए जाव' यह मायु, ना. દ્વારા એ જ વાત સમજાવવામાં આવી છે કે આ સૂત્રમાં તે ચમરની ત્રણ સભાઓનું વર્ણન કરવામાં આવ્યું છે, પણ તે સિવાયના ભવનપતિના ઈન્દ્ર, વાતવ્યન્તરાના ઈન્દ્ર તિષ્ક દેવોને ઇન્દ્ર અને સૌધર્મક૯૫થી અમ્યુત પર્યન્તના ક૯૫ના ઈન્દ્ર-એ પ્રત્યેકની श्रा सलाम।बाय छे..तभना नामाभो, व हवामानी सयामा भने साथ। પ્રમાણમાં જે કંઈ ફેરફાર છે, તે જીવાભિગમ સૂત્રની મદદથી જાણી લે જોઈએ.

Loading...

Page Navigation
1 ... 1164 1165 1166 1167 1168 1169 1170 1171 1172 1173 1174 1175 1176 1177 1178 1179 1180 1181 1182 1183 1184 1185 1186 1187 1188 1189 1190 1191 1192 1193 1194 1195 1196 1197 1198 1199 1200 1201 1202 1203 1204 1205 1206 1207 1208 1209 1210 1211 1212 1213 1214