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प्रमेयचन्द्रिका टीका श ३ उ १० सू० १ देवाना समास्वरूपनिरूपणम्
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मला ? भगवानाह - ' गोपमा !' हे गौतम । 'तओ परिसाओ' तिस्र' पर्पदः 'पण्णनाओ' मज्ञप्ता, वा एवाह-'त जा' - उद्यथा - 'समिभा' शमिका, श्रेष्ठत्वेन शान्तस्थिरमकृवितया शमवती अथवा अत्यन्तोपादेयवचनतया स्वस्वामिन क्रोधीत्यादिभावान् शमयतीति, 'शमिका' तथा 'चहा' चण्डा, प्रथमत्रत् dicatevarमावेन किञ्चित्क्रोधादिसत्रात 'चण्डा' इति व्यपदिश्यते, एव 'जाया' जावा, अनुत्तमत्वेन मकृत्यादिमहत्वरहिततया अनवसरे कोपादिना जायमानत्वात् 'जाता' इति व्यवहियते, एवाश्व तिस्र. क्रमशः 'अभ्यतरा ' रराज 'चमरस्स' चमरकी 'परिमाओ परिपदा 'कपण्णत्ताओ' कितनी कही गई हैं ? इसका उत्तर देते हुए भगवान्ने गौतमसे कहा 'गोयमा' गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज घमरकी परिपदा 'तओ' पण्णत्ताओ' तीन कही गई है 'त जहा' वे इस प्रकार से हैं 'समिया' शमिका अपनी शान्त एव स्थिर प्रकृतिके द्वारा श्रेष्ठ होनेसे शमवती, अथवा अत्यन्त उपादेय वचनवाली होनेके कारण अपने स्वामी के क्रोध एष औत्सुक्य आदि भावोंके शमन करनेवाली होनेसे शमिका, तथा 'घडा' शमिका परिषदा की तरह उस प्रकारके महत्वका अभाष होनेसे कुछ२ क्रोधादिक के सद्भाव हो जानेके कारण इस नामावाली, शान्त प्रकृति आदिसे रहित होनेके कारण अनुत्तम होने से, कोपा frent for raसरके भी करनेवाली होनेके कारण 'जाता' इस
raat - ऐसी ये तीन परिपदाएँ हैं । प्रथम परिपदा जो शमिका है वह असुररष्णो चमरस्स' असुरेन्द्र, असुररान, अभरती 'परिसाओ कइ पण्णत्तायो ?' ठेटली परिषद (सभा) म्ही छे ?
उत्तर-- 'गोयमा !' हे गौतम! सुरेन्द्र, असुररान यभरनी 'परिसाभो तो पण्णत्ताओ' परिष। यही छे 'तजहा' तेनां नाम नीचे प्रभा - 'समिया, वडा, जाता' मिठा ( समिता), थडा बने लता.
'समिका' या परिषद पोतानी शान्न भने स्थिर महूति द्वारा श्रेष्ठ होवाथी શમતાયુક્ત છે અથવા અત્યત ઉપાદેય વચનવાળી હાવાથી તેના સ્વામિના જાપ, મૌલ્લુક્ય (ઉત્સુકતા) ભાદિ ભાવાનું શમન કરનારી હાવાથી તેનું નામ મિકા છે વ’આ પરિષદ ચાટ ભશે સાદિકના સદ્દભાવવાળી હોવાથી તેનું નામ ચડા પરંતુ 'माता' या परिषठ शान्त अमृति साहिथी रहित होवाथी अनुत्तम હાવાથી કોઈ પણ પ્રકારના તર્ૐ વિના પાર્દિક કરનારી ઢાવાથી, તેનું નામ જાતા પડ્યું છે આ પ્રકારની ત્રણ પરિષદે છે. પહેલી મિકા નામની પરિષદ માભ્યન્તર