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भगवती
' दस देवाः जाव' दश देवा यावत्- ' विहरति विहरति यावत्करणात् ' आधिपत्य पौरपत्यादिक कुर्वन्त इति सव्राबम् । , तानेबाद{ व जहा ' तद्यथा 'सक्के देविदे' शक्रो देवेन्द्र देवराया' देवराम सौधर्मकल्पना मदक्षिणार्द्धदेवलोकाधिपति तल्लोकपालाभ इमे बोध्या-'सोमे, जमे, वरुणे, चेसमणे' सोम १, यम २ वरुण ३, वेश्रवण ४, भौ दीच्या देवलोकाधिपतिमाह 'ईसा णे १ देविदे देवराया' ईशानो देवेन्द्रो देव राज, तल्लोकपालाच पूर्वोक्ता एवेत्याह- 'सोमे, जमे; वरुणे बेसमणे ' सोमः २, यमः ३, वरुण ८, वैभवणशेति । 'एसा वसन्या' एषा सौधर्मेशानयोरुक्ता वक्तव्यता 'सन्येस त्रिप्पे ' सर्वेष्वपि सनत्कुमारादि-अच्यु है ? यहा यावत्पद से पूर्वोक्त पौरपत्प आदि पदका ग्रहण हुआ है। इसका उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते है- 'गोयमा' हे गौतम! दस देवा जाव विहरति ' दश देव आधिपत्य यावत् करते है । यहाँ पर भी यावत् पद से पौरपत्य आदि पद ग्रहीत हुए त जहा ' इसी पातको अय नामदिशेप पूर्वक प्रकट किया जाता है'सक्के देविंदे देवराया, सोमे, जमे, वरुणे, वेसमणे' सौधर्मकल्प में रहनेवाले देवोंके ऊपर आधिपत्य आदि करनेवाला देवेन्द्र देवराज शक्र है और इसके चार लोकपाल है-सोम, यम, बरुण, वैश्रमण यह देवेन्द्र देवराज शक्र सौधर्मकल्प नामके दक्षिणार्थ देवलोक का अधिपति है । उदीच्या देवलोक का अधिपति देवेन्द्र देवराज ईशान है, इसके भी ये ही सोम, यम, वरण और बैश्रमण चार लोकपाल है । एसा वचष्मा' सौधर्म और ईशानकरूपमें कही गई यह वक्तव्यता अवशिष्ट समस्त कष्पों में सनत्कुमार
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Gत्तर- 'गोयमा !' हे गीतम! 'दस देषा मात्र विहरति तेभना पर इस देवोनु व्याधियत्य सहि होय ''महा' ते इस बोना नाम नीम अभाव सक्के देविदे देवराया, सोमे, यमे, बरुणे, वेसमणे ' સૌધમ કપ નિવાસી. દેવો ઉપર દેવેન્દ્ર દેવરાજ શાનું તથા તેના સાર લોકપાલોનું સિમ, યમ, વરુણ અને વૈશમણુનું) અધિપતિ છે. તેવેન્દ્ર દેવાજ શક્ર દક્ષિણા દેવલોકના અધિપતિ છે.. ઉત્તરા દેવલોકના અધિપતિ રેવેન્દ્ર દેવરાજ ઈંશાન છે. તે પાનેન્દ્રના ચાર લેકપાકોનું नाम पद सोभ, यभ, बरु बने श्रम 'एसा मचषया' सौषभ भने સ્થાન બના દેવોના ઈન્દ્રે મિધિપતિ]ના વિષયનું મા યન સનમાથી અમ્રુત