Book Title: Bhagwati Sutra Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 1150
________________ ८७६ मनस्वीरे टीका-अमरकुमारादिदेवानाम् अवधिमानदनायामपि नियोपयोगोऽपि विद्यतेऽतस्तेपाम् इद्रियविपय मरूपयितु नवमोशष माताति-'रागिरे' इत्यादि । राजगृहे गौतमो यावत्-एव क्ष्यमाणपकारेण 'बयासी' मा दीद-मपृच्छत्- 'काविण मते !' हे गदन्त ! पतिविष बलु 'रिय विसए' इन्द्रिय विपय 'पण्णते' मनप्त ? यावत्मरणात 'नगर स्वामी समय मृत , पर्पत् निर्गछति, प्रतिगता पर्पद पर्युपासीन ति सप्रायम् । भगवान् भाइ-'गोयमा ' हे गौतम 'परविहे ' पत्रविध । 'इदियसिए' इन्द्रिय विषय 'पण्णत्ते' प्राप्त 'त जहा' उघया 'मोडदिय विसए' भोलिपरिपया टीकार्य असुरकुमार आदिदेवोंके अवधिज्ञानके मद्भावमें भी इनि याँका उपयोग भी मौजुद रहता है इसलिये उनकी इन्द्रियों के विषयको प्ररूपण करनेके लिये सरकारने इम नौमे उदेशक का प्रारम पिया है। 'रायगिहे' इत्यादि 'रायगिहे' राजगृहमें गौतमने यावत् इस प्रकार पूछा-या इम प्रफारसे सपथ लगाना चाहिये कि राजगृह नगरमें माघीर स्वामी समवस्त हुये, पर्षद निकली, प्रम मारा धर्मका उपदेश सुनफर फिर वह पीछे चली गई! गौतमने प्रमुफी पर्युपासना की और पर्युपासना करते हुए ही उनसे उनोंने इस प्रकार पूछा यरी पात यहा 'जाव' पदसे मूचित की गई है। गौतमने प्रभुसे 'कइ यिहेण भवे ! इंदियषिसए पण्णते, हे भवन्त ! कितने प्रकारका इन्द्रियोंका विषय का गया है, इस प्रकारसे पूण तब प्रमुने कहा 'गोयमा' गौतम ! इंदियविसर पचषि पण्णप्ते' इन्द्रियोंका ટીકા–સુમાર આદિ દેવામાં અવધિજ્ઞાનને સદબાવ હોવા છતા પણ ઇનિનો ઉપયોગ પણ થતું હોય છે તેથી તેમની ઇન્દ્રિના વિષયની આપણા કરવાને માટે સૂત્રકારે આ નામે શિક શરૂ કર્યો છે જ નગરમાં महावीर प्रभु पयाय नही 'भाव' या नयना au URBAN हैધર્મોપદેશ મન કરવાને પરિષદ નીકળી ષપદેશ સાંભળીને પરિષદ પાછી ફરી ત્યાર બાદ મહાવીર પ્રભુને વદ નમક્ષ કરીને ગોતમ સ્વામીએ વિનમ્પ પૂર્વક नीना 1 ५७या- 'जाप एक बयासी' ५४ ५२४त सूत्रपा8 अ५ ४२॥ - 'काविहेण मते! इदियविसर पण्णचे' मन्त! भन्द्रियाना વિષય કેટલા પ્રકારના કા છે! મહાવીર પ્રભુ તેનો જવાબ નામ પ્રમાણે આપે - 'गोयमा " गौतम! 'इदियरिसए पषिहे पण्णत्ते' न्द्रिमान विषय पर

Loading...

Page Navigation
1 ... 1148 1149 1150 1151 1152 1153 1154 1155 1156 1157 1158 1159 1160 1161 1162 1163 1164 1165 1166 1167 1168 1169 1170 1171 1172 1173 1174 1175 1176 1177 1178 1179 1180 1181 1182 1183 1184 1185 1186 1187 1188 1189 1190 1191 1192 1193 1194 1195 1196 1197 1198 1199 1200 1201 1202 1203 1204 1205 1206 1207 1208 1209 1210 1211 1212 1213 1214