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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३ उ.१ ईशानेन्द्रम्य देवदर्यादिप्राप्तिकारणनिरूपणम् १७९ परिणामिक्या पत्रज्यया प्रबजितः प्रबजितोऽपि च खलु सन् इमम् एनद्रूपम् अभिग्रहम् अभिगृह्णाति-'कल्पते मम यावन्नीवं पप्टं पप्ठेन, यावत्-आहर्तुम् इति कृत्वा' इमम् एतद्रपम् अभिग्रहम् अभिगृहाति, अभिगृह्य यावज्जीवं पप्ठं पप्ठेन अनिक्षिप्नेन तपः कर्मणा ऊचे वाह प्रगृह्य भगृह सूर्याभिमुख आता. एनभूमी आतापयन विहरति, पष्टस्यापि च पारणके आतापनभूमितः प्रत्य अपने उन मित्र ज्ञाति आदि परिजनोंसे पूछा [आपुच्छिना, मुंडे भवित्ता पाणामार पवजाए पश्चइप] पूछकर फिर वह मुंडित होकर के प्राणा मिकी दीक्षा से दीक्षित हो गया [पव्वइए वियणं समाणे इम एया स्वं अभिग्गहं अभिगिह दीक्षित होते ही उसने इस प्रकार अभिग्रह लिया [कप्पड़ मे जायजोवाए छ छटेणं जाव आहारित्तए तिकटु इमं पयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हह] कि मै जपतक इस पर्याय में रहूंगा-अर्थात् जीवित रहंगा तबतक में छह छह की तपस्या करूँगा
अर्थात निरन्तर दो दो उपवास करूँगा। एवं पारणा के दिन सिर्फ __ ओदन भात का ही उसे २१ बार धोकर आहार लूंगा। अभिगि
हित्ता] इस प्रकार का अभिग्रह धारण करके वह [छट्ट छटेणं अणिविवत्तणं तवोकम्मेणं उड्ड बाहाओ पगिज्झिय सराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे विहरइ छ? छट्ट की तपस्या करने लगा और दोनो हाथो को ऊंचा करके वह सूर्याभिमुख होकर आतापना भी लेने लग गया [छट्टस्स वियणं पारणग मि आयावणभूमीओ पच्चो. न्येष्ठ पुत्र पासे दीक्षा देवानी २०० भाl. [आपुच्छिता, मुंडे भवित्ता पाणामाए परजाए पचहए] २० सपने माथे भुस ४२वीन तो प्राणामिकी दीक्षा 20t२ 3. [पवइए वि य गं समाणे इमं एयावं अभिग्गर अभिगिण्डइ] दीक्षा माजी२ शने तुरत तेभ सेवा अलि धार ४ ४- कप्पड़ मे जावजीवाए छठें छठेणं जाव आहारित्तए ति कह इमं एयाख्यं अभिरगह अभिगिण्हड] ७वनपर्यत निरंत२७४२ ॥२२) ७४ शश. पारणात हिवस ઊંચ, નીચ અને મધ્યમ ઘરસમુદાયમાથી વહેરી લાલા ભાતને પાણીથી ૨૧ વાર धान तना माडा शश.अभिगिण्हित्ता माघारने मलियर धारण४शन तसा छिं छटेणं अणिविश्वत्तेणं तवोकम्मेणं उट्टयाहाओं पगिज्झिय पगिज्झिय मरा. भिमुहे आयावणभूमिए आयावेमाणे विहरड] ७४ने पाक ७४नी या निरंतर કરવા લાગ્યા. અને બને હાથ ઊંચા રાખીને સૂર્યની સામે મેં રાખીને તેઓ तवाणी भूमिमा सातापन ! संवा साया [छठस्स वि य गं पारणगंमि