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३२२ यावत-असंख्पेया द्वीपसमुद्राः नन्दीश्वरवर पुनद्रीपं गताप गमिष्पन्ति पनि प्रत्यय (फः प्रत्ययः) भगवन् ! अमुरकुमारा: देवाः नन्दीश्वरवाद्वीपं गताय, गमिप्यन्ति च ! गौतम ! ये उमे अन्तिो भगवन्तः, पतेपां जन्ममहेषु वा, निष्क्रमणमहेषु या ज्ञानोत्पादगहिमा (महिम) वा, परिनिर्वाणमहिमास (महिमस) या, एवं खल अमुरकुमाराः देवाः नन्दीश्वरवरं दीपं गताप गइविसए पण्णते) हे भदन्त ! चे असुरकुमार देव अपने स्थान से कहांतक तिरछे जा सकते है ? (गोगमा। जाव असंखेना दीवसमुद्दा नंदिस्सरवरं दी गया य गमिस्संति प) हे गौतम! यावत् असंख्यात दीप समुद्रतक तिरछे जाने की उन असुरकुमारा म शक्ति है। पर वे अभीतक वहातक न गये है, न जाते है भोर न आगे भी जायेंगे, यह तो उनकी यहां तक जाने की शक्ति मात्र का प्रदर्शन करने के लिये कहा गया है वे तो नंदीश्वर बीप: तक ही गये है, प्रसंगवशवर्तमान में जाते है आगे भी जायग। (किं पत्तियं णं भंते। असुरकुमारा देवा नंदिस्सरवरं दीवं गया | गमिस्संति य) हे भदन्त ! वे असुरकुमार नंदीश्वर दीपतक जाते है। गये हैं और आगे भी हीतक जायेंगे इसका क्या कारण है। (गोयमा! जे इमे अरिहंता भगवंता एएमि णं जम्मण महसुवा निक्खमणमहेसु वा णाणुप्पायमहिमासु वा परिनिव्वाण महिमा वा एवं खलु असुरकुमारदेवा मंदिस्सरवरं दी गया य गमिस्सति य) देवाणं तिरियं गइविसर पण्णने ?) 3 NE-त ! मसुरभार है। तमना स्थानवी કેટલા તિરછાં જવાને સમર્થ છે? (गोयमा । जाव असंखेज्जा दीवसमुद्दा नंदिस्सरवरं दी गयाय गमिस्संति य) છે ગૌતમ ! અસંખ્યાત દ્વીપસમુદ્રો સુધી તિરછી દિશામાં જવાને તેઓ સમર્થ છે. પણ તેઓ આજ સુધી કદી પણ ત્યાં સુધી ગયા નથી, જતા નથી અને જશે પણ નહીં. આ તો તેમની શકિત બતાવવા માટે જ કહેવામાં આવ્યું છે. તેઓ નવજ દ્વિીપ સુધી જ ગયા છે જાય છે અને જશે. ત્રણે કાળમાં આ પ્રણે જ બન્યા કરે છે. कि पतियं णं भंते । असुरकुमारा देवा नंदिस्सरवरं दीवं गया य गमि. तिय) सन्त ! शारणे असुरशुभा२ । नदीवर सुधीरता ता, तभानमा लय छ भने भविष्यमा ? (गोयमा ! जे उमे अरिहंता भगवंता एएमिण जम्मण महेसुं वा निक्रवमण महेसु वा णाणुप्पायमहिमास वा परिनिवाण महिमाम वा एवं खलु अमुरकुमार देवा मंदिस्सर वरं दीव गया य गमिस्संति य)