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चन्द्रिका टी. श. ३. उ. ४ सू. ३ पारिणामिक वलाहक वक्तव्यतानिरूपणम् ६२७ महत् स्त्रीरूपं परिणमय्य अनेकानि योजनानि गन्तुम् ? हन्त, प्रभुः, स भदन्त ! किम् आत्मद्ध गच्छति ? परद्धय गच्छति ? गौतम । नो आत्मर्या गच्छति, परद्धय गच्छति एवं नो आत्मकर्मणा, परकर्मणा, नो आत्ममयोगेण' परमयोगेण, में यावत् स्यन्दमानिका के रूप में परिणमित होनेके लिये क्या समर्थ है ? (हंता पभू ) हां गौतम ! मेघ एक विशाल स्त्रीके रूपमें यावत् . स्यन्दमानिका के रूपमें परिणामित होने के लिये समर्थ है । (पभू णं भते । बलाहए एवं महं इस्थिरूणं परिणामित्ता अणेगाई जोयणाहं गमित्त) हे भदन्त । बलाहक एक विशाल स्त्रीरूपमें परिणत होकर अनेक योजनों तक जाने के लिये समर्थ है क्या ? (हंता पभू ) हां, गौतम ! बलाहक (मेघ) एक विशाल स्त्रीरूपमें परिणत होकर अनेक योजनों तक जानेके लिये समर्थ हैं । (से भंते किं आयडीए गच्छइ, परिइदीए गच्छड़ 1) हे भदन्त | वह बलाहक क्या अपनी निजकी शक्तिसे अनेक योजनों तक जाता है या परकी सहायता से अनेक योजनों तक जाता है । (गोयमा ! नो आयड्ढीए गच्छइ, परिड्ढीए गच्छद) हे गौतम! बलाहक - मेघ-अपनी शक्तिसे अनेक योजनों तक नहीं जाता है, किन्तु परकी सहायतासे ही अनेक योजनों तक जाता हैं । ( एवं नो आयकम्मुणा, परकम्मुणा, नो आयप्पओगेणं, परप्प ओगेणं) इसी तरह वह बलाहक - आत्मकर्मसे अनेक योजनोंतक नहीं पर्यन्तना श्ये परिक्षुभित थवाने समर्थ छे ! ( हंता, पभू ) डा, गौतम ! भेध शे વિશાળ રૂપે પરિણમવાને સમર્થ છે, એજ પ્રમાણે સ્પન્દમાનિકા પન્તને રૂપે પરિ लुभित थवाने समर्थ छे. ( पभूणं भंते । वलाहए एवं महं इत्थितं परिणामेत्ता जगई जोगणाई गमित्तए !) हे महन्त । मेध मे विशाल स्त्री३ये परिशुभीने भने योन पर्यन्त भवाने शुं समर्थ छे ? (हंता, पभू) डा, गीतभ ! भेध शे विशाल श्री३ये परिशुभीने भने योनपर्यन्त ज्वाने समर्थ छे. (से भंते ! किं. आयड्ढीए गच्छइ, परिड्ढीए गच्छद्द 1) डे लहन्त ! ° ते भेद्य तेनी चातानी કિતથી અનેક ચેાજનપર્યંન્ત જાય છે, કે અન્યની સહાયતાની અનેક ચૈાજનપર્યંત लय छे ? (गोयमा ! नो आयढूंढीए गच्छइ, परिड्ढीए गच्छर ) से गौतम | મેઘ તેની પોતાની શકિતથી અનેક ચેાજન પન્ત જતેા નથી પણુ અન્યની સાય ताथी ? भने योन्जन पर्यन्त लय छे. ( एवं न आपणा, परकम्पुणा, नो आयपओगेणं, परप्पओ गेणं) हे गोतम ! मेन प्रभाते त्या
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