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प्रमेयचन्द्रिका टीका श ३३ ७ स ४ वरुणनामकलोकपालस्वरूपनिरूपणम् ८७ पवर्णणानि, 'उदम्मेदा इवा' उदकमेटा इति वा, उदफो दा गिरि तटादिभ्यो मरणात्मकजलोदभवा 'उदप्पीला हवा' उदकोन्पीला इति वा, तडागादि जलराशय 'उन्वाहा इवा' अपवाहा उति वा, अपवर्प युक्तानि अल्पानि उदक वहनानि, यद्वा-ऊर्चगमनम्रूपेण जलस्य वहनम् ‘पबाहा उवा' पवाहा इति वा, प्रकृष्टानि उदयबहनानि अविन्छन्न धारामवाट इस्यय ‘गामवाहा इवा' प्रामवाहा इति वा; ग्रामाणामपि प्रवहणकारका जलप्रवाहा पूरविशेपा इत्यर्य. 'जाव-सनिवेमवाहा इवा' यावत् सनिदेशवाहा इति वा, यावत्-मनिवेशानामपि प्रवडणाकारका जलपुरा यावतरणात्-'नगरवाहा इति वा, खेटवाहा इति वा, फटवाहा इति वा, द्राणमुखबाहा इति वा, मडम्बबाहा उनि घा, पृष्टिका होना, 'दुवुद्धी हवा' दुर्भिक्ष-अकालकी कारणमृत अल्प-धोसी सी वरमाद का होना, 'उदग्मेदाई घा' पर्वत प्रदेशों से झरना आदि के रूपमें पानीका निकलना 'उदप्पीलाइ घा' उदकोत्पील-तहाग आदि में जलकी राशिका पना रहना, 'उन्वाहा रया' थोडा पानीका पाना, अथवा ऊपर होकर पानीका पहना, 'पव्याहार घा' अविच्छिम (निरन्तर) धारा से जलका पहना 'गामवाहाह वा' गांव के गाव यह नायें इस प्रकार से जलके पूर आना, 'जाय' यावत् 'सनिवेसघाइ या' सनिवेश भी पर जायें ऐसे पूर का आना, 'पावत् ' पद से 'नगर वाहाड वा' नगर के नगर तक वह जायें ऐसे जलप्रवाह का आना, खेडवाहार या' खेट यह जावे ऐसे पूरका आना, 'पटवाहा इ घा' फर्यटोको यहानेवाले पूरोंका आना, 'द्रोणमुखधाहाड या' द्रोणमुखांको पहानेवाले पूरों का आना, 'मदम्पवाहाड घा' मडम्यों को पहानेवाले पूरोका आना, 'पट्टनयाहाड वा' पहनको घहा देने वाले पूरों परमा यो 'दसटीड वा दु ५ वो १२सा या 'उदन्मेदाई वा' हुन प्रदेशमाथी RAILE ३५ पाली पढे, 'उदप्पीलाइ वा' Bikela वा माहिमा पहन ध्या २३वो 'उन्याराह चा' पाना था। प्रवाई पहा मया 6५२ याने पाणी हेतु, पम्याहार वा' निरत२ 3 पारीन। भाइ पठेवा, 'गाममा वा' मने गाम त य मेवु पाला ५ माप 'नाव सनिवेसपाहा या' मनिश पतना स्थान। त नय मे ५२ गाव शहरी 'जान' पक्षी 'नगरवाहा: वा, वेडवाहाड वा, क्घटवावा द्वाणमुग्ववाहावा, 'मडम्बवाधार पा, पहनगाड ना, आसमवाहावा, सवाहवाहावा' मा सूत्रपा8 अन ४२॥५॥ तेन भावार्य नीय प्रभा