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गमतीद
शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य भ्रमणस्य महाराजस्य महावानि, महाि अश्रुतानि, अस्मृतानि, भविज्ञातानि तेना या भ्रमणकायिकानां देवानाम्, शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य वैधमणस्य महाराजस्य इमे देवा यथाऽपस्याऽभिलावा अभवन, तद्यथा - पूर्णमद्रः, मणिभद्र, श्रमिमाः सुमनोभद्रः, चन, रक्षः, पूर्णरक्षः, सद्वान, सर्वयक्षा, सर्वकाम, समज भीतर पडी हुई है- अर्थात् इन स्थानों में अनजानी जो द्रव्यराशिविभूति भूमिके भीतर गढ़ी हुई अथवा नहीं गढी हुई रम्बी है ( न साह सस्स देविंदस्स देवरण्णो वेसमणस्स महारण्णो, भवा गाई) वर देवेन्द्र देवराज शकके लोकपाल इन वैश्रमण महाराज से अज्ञात नहीं है, (अदिट्ठार) अदृष्ट नहीं है, (अनुयाइ) अद्भुत नहीं हैं । (अस्सुयाह) अस्मृत नहीं है, 'अविष्णायाइ) अविज्ञात नहीं है। और (तेसिं वा वेसमणकायाण देवाण) न उस वैश्रमण सोमपालके arrer for देवोंसे भी अदृष्ट आदि नहीं है । (सम्स देविंदम्स देवरण्णो वेममणस्म महारण्णो हमे देवा अहावयामिष्णाया होत्या) देवेन्द्र देवराज शकके लोकपाल वश्रमण महाराजको ये आगे कहे गये देव पुत्रके जैसे अभिमत है। (त जहा) वे देव ये है(पुण्णम माणिभद्दे, सालिमहे सुमणमरे, चक्के, रक्से, पुण्णरक्ले, सध्वाणे, सम्वजसे, मव्वकामे, समिद्धे, अमोहे, असगे) पूर्णभङ्ग, मणिभद्र, शालिभद्र सुमनोभद्र, चक्र, रक्ष, पूर्णरक्ष, सद्वान, सर्व શુકામાં, સભાભવનમા અને રહેવાના ઘરમાં પડેલી એટલે કે તે સ્થાનમાં રેતી
घटया विनानी ने द्रव्यशशि पबी छे (न साइ सकस देविंदस्स देवरो deमणस्स महारण्णो अन्नायाइ ) ते देवेन्द्र देवरानशाना वैभभ મહારાજથી અજ્ઞાત नक्षी (भदिद्वार ) दृष्ट नक्षी, (असुयाइ) अश्रुत नथी (अनुयाई) वस्भूत नहीं बने (अविष्णायाई) विज्ञांत नही बने ( तेर्सि ना वेसमणवाइयाण देषाण) ते वात ते वैश्रायाना श्रभासि દેવાથી પણ અજ્ઞાત અષ્ટ આદિ નથી.
( सक्कस्स देविंदस्स देवरवणो बेसमस्स महारण्णा इमे देवा भावनाऽमिणाया होत्या-संमा) देवेन्द्र, देवशन शालाया वैश्रभना पुत्रस्थानीय देवे। नीच प्रभा - (पुन्नमधे, माणिभदे, सालिमद्दे, सुमनभई, चक्के, रकखे, पुष्परमणे, सम्वाणे, मध्वणसे, सव्वकामे समिद्धे, ममोरे, असंगे) भद्र, भलिभद्र शासन, सुमनोभद्र
२, सुरक्ष, सज्ञान
सर्व यश, सर्वकाम, समृद्ध, अभेष बने सञ