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ममेयचन्द्रिका टी २३ उ.७सू ५ वैश्रमणनामकलोकपालस्वरूपनिरूपणन् ८३९ अमोघ , असन, अक्रस्य ग्वल देवेन्द्रस्य देवरानस्य वैश्रमणस्य महाराजस्य द्वे पल्योपमे स्थिति प्रमप्ता, ययाऽपत्याऽभिमानाना देवानाम् एक पल्योपम स्थिनि मनप्ता, एव महर्दिफ., यावत्-श्रमणो महाराज , तदेव मदन्त ! वदव भदन्त ! इति ॥ सू ५॥
, ॥ उतीय शतकस्य सप्तमोदेशक समाप्त. ॥ ३-७ ॥ ___टीका- चश्रमणनामफचतुर्यलोकपाल वर्णयितु प्रस्तौति-'कहिण भसे !' उत्यादि । गौतम पृन्छति- हे मदन्त ! कुत्र म्बल कस्मिन् म्याने किल 'सफस्स देविंदस्स देवरग्णो' शक्रम्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य 'वेसमणस्म पश, सर्वकाम, समृद्ध, अमोघ और अमग। (सकस्स ण देयिवस्स देवरपणो, वेसमणस्स महारणी दो पलिओषमाइ ठिई पण्णता) देवेन्द्र देवराज शफके लोकपाल उम प्रमण महाराजको स्थिति दो परयो पमको कहो गई है । (अहावचाऽभिण्णायाण देवाण एगं पलिओ बम ठिई पण्णत्ता, एवमहढीए जाव वेसमणे माराया) तथा-अप स्पके जैसे माने गये देवोंकी स्थिति एक पस्योपमकी कही गई है। इस प्रकारकी महान ऋद्धिवाला यायत् या श्रमण लोकपाल है। (सेव भंते ! सेव भते ति) हे भदन्त ! आपने जैसा का है पह ऐसा ही है हे भदन्त ! बा ऐसा ही है-इम प्रकार कह कर यावत् वे अपने स्थान पर विराजमान हो गये ॥
टीकार्य-इस सूत्रधारा सूत्रकार चौये थेप्रमण लोकपालका वर्णन कर रहे है-गौतम प्रमुसे पूछते हैं कि 'भंते' हे भदन्त ! 'समरस
(सक्फस्स ण देविंदस्स देवरण्णा, वेसमणस्स महारण्णो, दो पलिभोषमार ठिई पम्णता) उपेन्द्र देवरा Aaili asia वैभ मानी स्थिति में पश्योपभनी जी (महारचाऽमिण्णायाण देवाण एग पलिओषम ठिई पण्णचा) भने तमना स्थानीय रेवोनी स्थिति मे४ पक्ष्यापभनी ही छ (पवमहडीए नाव समणे महाराया) ते श्रम ala Suns महाभूति use युटत (सेव मते। मेस भते ति) ३ महन्त! सानी d तदन એનીર 35 મા વિષયનું જે પ્રતિપાદન કર્યું તે યથાર્થ છે આ પ્રકારના શબ્દ ઇતિમ સ્વામી વ કાણા નમસ્કાર કરીને તેમને સ્થાને બેસી ગયા.
,રકિય—આ સૂત્રમાં સૂત્રકાર દ્રના દયા લોપાલ વમનું વર્ણન કર્યું ७ गतम स्वामी महावीर प्रभने ५७ - 'मते मन्त' (सक्कस
સત્ય છે જપ આ