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प्रमेयचन्द्रिका टी श ३ उ.७८ ५ वैश्रमणनामकलोकपालस्वरूपनिरूपणम् ८३९ अमोघ , मसन, शक्रस्य ग्वल देवेन्द्रस्य देवरानस्य वैश्रमणस्य महाराजस्य दे पल्योपमे स्थिति ममता, यथाऽपत्याऽमिझाताना देवानाम् एक पल्योपम स्थिनि भन्नता, एव महर्टिक , यावत्-श्रमणो महारान , तदेव मदन्त ! वदेव भदन्त ! इति ॥ सू ५ ॥
॥तीय शतपस्य सप्तमोदेशक समाप्तः ॥ ३-७॥ ___टीका-' वभ्रमणनामकचतुर्यलोकपाल वर्णयितु मस्तौति-'कहिण मते !' इत्यादि । गौतम पृच्छति- हे भदन्त ! कुत्र बल्लु कस्मिन् म्याने मिल 'सकस्स देविस्स देवरग्णो' शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य 'धेसमणस्म यश, सर्वकाम, समृद्ध, अमोघ और असग। (सकस्स ण देविंदस्स देवरणो, वेसमणस्स महारण्णो दो पलिओवमाइ ठिई पण्णत्ता) देवेन्द्र देवराज शफके लोकपाल इम वैश्रमण महाराजको स्थिति दो पल्यो पमको कहो गई है। (अदावचाऽभिण्णायाण देवाण पगं पलिओ यम ठिई पण्णत्ता, एवमहढीए जाव वेसमणे माराया) तथा-अप त्यके जैसे माने गये देवोंकी स्थिति एक पल्योपमकी कही गई है। इस प्रकारकी महान ऋद्विवाला यावत् या श्रमण लोकपाल है। (सेव मते ! सेष भते चि) हे भदन्त ! आपने जैसा फहा है यह ऐसा ही है हे भदन्त ! यह ऐसा ही है-इस प्रकार कह कर यावत् घे अपने स्थान पर विराजमान हो गये ॥
टीकार्य-इस सूत्रधारा सूत्रफार चौये प्रमण लोकपालका वर्णन कर रहे हैं-गौतम प्रमुसे पूछते हैं कि “मते' हे भदन्त ! 'सकस्स
(सरफस्स ण देविदस्स देवरण्णा, येसमणस्स महारण्यो, दो पलिभोवमाई ठिई पण्णचा) हेव हे Alt as वैधभर मसरानी स्थिति ने पत्यापभनी दी (महाववामिण्णायाण देवाण एग पलिमोचम ठिई पण्णचा) अने तेभाना स्थानीय देवानी स्थिति मे पक्ष्यायमन ही (एममहट्टाए जाय वेसमणे महाराया) ते वैभalkie Sun महाभूति या मुश्त छ (सेव मते ! सेव भते ति) ३ महन्त! आपनी पात तदन
છે કે આ વિષયનું જે પ્રતિપાદન કર્યું. તે યથાર્થ છે. આ પ્રકારના શબ્દ બાલીને પોતમ સ્વામી વત્રા નમસ્કાર કરીને તેમને સ્થાને બેસી ગયા.
ટકાથ–આ સૂત્રમાં સૂત્રકારે શો દ્વના શાથા પન્ન શમનું વર્ણન કર્યું छ मातम स्वामी महावीर प्रभुने - 'मते ! ३ महन्त ' (सक्फस