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८३८ शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य भमणस्य मारामस्प महावानि, ममापि, अश्रुतानि, अस्मृतानि, भविज्ञातानि, तेषा मा श्रमणकापिकानां देवाना, शमस्य देवेन्द्रस्य देवरामस्य वैधमणस्य महारामस्य इमे देवा यथाऽपत्याऽभिन्नाता अभवन , तपया - पूर्णमद्रा, मनिभद्र, पामिमा, मुमनोभद्रा, पा, रस., पूर्णरक्षः, सद्वानः, सर्पयशा', सर्वकाम , सपब, भीतर पटी हुई है-अर्थात् इन स्थानों में अनजानी जो प्रग्यराशिविभूति-भूमिके भीतर गढी हुई अथवा नहीं गरी हुई रग्बी है (न ताह सबस्स देविंदस्स देवरपणो पेसमणस्म महारणो, अमा पाई) वह देवेन्द्र देवराज शमके लोकपाल इन वेभ्रमण महाराज से अज्ञात नहीं, (अदिहाइ) महष्ट नहीं, (असुयाइ) अमृत नही है। (अस्सुयाइ) अस्मृत नहीं है, 'अविण्णायाइ) अविनात नहीं। और (तेमि वा घेसमणकाइयाण देवाण) न उस वेप्रमण सोकपालके उनपेमण यायिक देवोंसे भी भष्ट आदि नहीं है। (समाम्स देविंदम्स देवरपणो वेसमणस्स महारपणो इमे देवा अहापच्चाभिण्णाया होस्था) देवेन्द्र देवराम शकके लोकपाल वैश्रमण माराजको ये आगे कहे गये देव पुत्रके जैसे अभिमत है। (त जहा) ये देव ये है(पुण्णमहे माणिभदे, सालिम सुमणमरे, पक्के, रक्से, पुण्णररले, सवाणे, सध्वजसे, सम्यकामे, समिद्धे, भमोहे, असगे) पूर्णमा मणिभद्र, शालिभद्र सुमनोभद्र, चक्र, रक्ष, पूर्णरक्ष, समान, सर्व શકાગોમાં, સભાભવનમાં અને રહેવાના ઘરમાં પથ્થી–એટલે કે તે સ્થાનમાં રહેતી
या विनानी २ यति ५४ी छ (न ताइ समस्स देविदस्स देवरको समणस्स महारण्यो मन्नायाइ) ते स्व., देवरा थाना asha सभा भसाशी मत नपा (मदिहाडं) म नयी, (अमयाई) भभुत ना, (मस्सयाइ) मभूत नी भने (अविणायाई) विज्ञात ना बने (लेसिया वेसमणकाइयाण देवाण) ते पात ते समानामपित તેથી પણ અજ્ઞાત અષ્ટ આદિ નથી.
(सकफस्स देविंदस्स देवरण्णा समस्स मारण्णो इमे देखा महापामिणामा होस्था-तमा) २३, १r at asta मना
मानाय स्वाना प्रभारे - (कृष्णभदे, माणिमरे, सालिमरे, मुमममरे, पके, रकखे, पुग्णरमले, सम्याणे, मध्यमसे, सम्यकामे समिदे, ममोरे,
જ પૂજઇ, મણિભદ્ર શબ સુમનામ કે રસ, રક્ષ, ખાન सयय, सम, सभक समाप बने असम