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मनातीपणे योप" इत्यमिषीयते १५, 'एमेरा पमरसा' एवम् उक्तपकारेन एते पूोता. यमस्य पुनस्थानीया देना पश्चदशसस्यका 'रिया' आन्याता: कविता । भय यमस्य तस्सम्बन्धि यथाऽपत्य देवानाभ स्पितिमार-'मक्कास में' इत्पादि। शक्रस्य स्खल 'देविंदस्स देवरणो' देवेन्द्रस्य देवराजम्य 'ममस्स मारनो' यमस्य महारानस्य 'सतिमाग' सप्रिभाग पल्योपमस्य तृतीयभागसस्टिम 'पलिभोषम' एक पल्योपमम् 'ठिई स्थिति आयुप्यम् 'पष्णता' माता पिता 'भागववाभिण्णायाण' यथाऽपत्यामिमावानाम् अपत्यमानत्वेनामिमतानाम् उपर्युक्तानाम् 'देवाण' देवानाम् ‘एग' एकम् 'पलिओनम' पत्योपमम् ठिई स्थितिः 'पण्णत्वा' प्रसप्ता, एवम् उक्तप्रकारेण 'महिदिए' मार्मिक 'भारजमे' यावत्-यम 'महाराया' महाराजो घर्तते, यावत्करणात्-'मगधुतिक, मारला, महायशा महानुभाव इत्यादि सर्व सग्रामम् ॥ ० ३ ॥ हुआ पन्द कर देता है, इस कारण इसका नाम महाघोष ऐसा हुआ है, 'एमेण पतरसा' इस प्रकार ये पूर्वोक्त 'पन्नरसा' पन्द्रह १५ देव यमके पुत्र स्थानीय 'आहिया' कहे गये हैं। अब सूत्रकार 'सक्फस्स ण देविदस्स देघरण्णो जमम्स मारणो सचिभ ग पलिमोयम ठिई पण्णता' इस सूत्रपाठ द्वारा यह प्रकट कर रहे हैं कि देवेन्द्र देवराज शक के लोकपाल यम महाराजकी जो स्थितिबा त्रिमाग सहित एक पक्ष्योपमकी है। तथा 'अहाववाभिण्णापाण देवाण पग पलिभोषम ठिई पण्णत्ता' अपस्य के जैसे माने गपे उप युक्त देषोकी स्थिति केषल एकपल्यापमकी हैं। 'एब महिडीए जाब अमे महाराया' इस तरह उक्त प्रकारसे महान ऋदिवाले यावत् ये यम महाराज हैं। यहा 'यावत् ' पदसे 'महागुतिफ -महापुतिवाले ભાગ કરતા નાયક છવોને, ભય કશ અવાજ કરીને પશુઓના વાડા વી મા પૂરી ना२ ५२भाषामि४ खाने भारा 'एमेए पमरसा मारिया' अपशप १५ દેવોને યમના પુત્ર સ્થાનીય દેવો કહ્યા છે
बेसुमार मम Aruart स्थिति [InH नि३५५ ४. 'साकस्स टिम्म देपरण्णो नमस्स मारणो सचिमार्ग पलिमोरम ठिी पण्णचा' દેવેન, રાજ શમના બીજા વૈપાલ પમ મહારાજની સ્થિતિ વિભાગ સહિત એક बस्योपभनीही तया बापचामिणायाम देवाण : एर्ग पलिमोयम ठिई पा, 4 ANI IRथानीय स्वाना मिति ४ पा५मन पस