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भगतीने
सम् ? कथितम् ? भगवानाह - 'गोयमा' हे गौतम ! 'तस्स में' तस्य सक पूर्वोक्तस्य 'सोहम्मद सयस्य विमाणस्स ' सीधर्मावितसकम्प विमानस्प 'पचत्थिमेण' पविमेन पश्चिमदिग्भागे 'सोहम्मे कप्पे' सोधर्मे कल्पे 'असंलेखा' असख्येयानि - 'जहासोमस्स' यथा सोमस्य ' तहारिमाण - रायहानीओो ' तथा विमान - राजधान्य 'माणिमन्ना' मणितव्या 'जान - पासायचडें सवा' यागतमासादावत सका, तथाच यावत्करणात् सोमवत् सर्व वर्णन बोध्यम् । 'नगर' नगरम् अय विशेष - 'नामनाणसं' नामनानात्वम् तदभिन नामस्व वर्तते इति बोध्य, वरुणस्य भाशादि कारिणो देवान प्रदर्शयितुमाह 'सक्क्स्स म' इत्यादि । इसका उत्तर देते हुए गौतम से करते है कि- गोयमा' है गौतम ! 'स' पूर्वोक्त 'सोहम्मघडे मयस्स विमाणस्स' मोघमवतंसक विमान के 'पचत्पिण' पश्चिमदिशामें 'मोहम्मे कप्पे' सौधर्मकपप में 'असले खाः' असख्यात हजार योजन आगे जाकर पश्चिमदिशा में वरुण महाराजका स्वयजल विमान है - ऐसा संबध यहां लगा लेना चाहिये, यही पात 'जहा सोमस्स सष्ठा विमाण रायहाणीओ भाणियष्या' इस सूत्र पाठ द्वारा प्रकट की गई है तथा "इस विषय से सम्बन्ध रखने घाला कथन' सोम लोकपालके कथित विमानकी तरहसे ही जानना चाहिये, राजधानी आदि का 'जाब पासायघडे सया' प्रासादानतसक तकका सय कथन भी सोमकी वर्णित राजधानी आदि की तरह से ट्री जानना चाहिये यह समझाया गया है 'नवर' विशेषता सिर्फ 'नाम नाच' भिन्न नामको हि लेकर है अर्थात् इनका नाम वरुण है ।
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उत्तर- ' गोयमा !' से जोतभ! 'तस्स सोहम्म सयस्स विमाणस्स' पूर्वोठित सौधर्भावित विभाननी ' पच्यस्थिमेण' पश्चिम दिशामा 'सोहम्मे कप्पे' सौधर्भ' असखेज्जाद स'ज्यात उतर 6 ચેાજન દૂર જવાથી વસ્તુ મહારાજનું સ્વયં વલ. નામનું મહાવિમાન આાવે છે એવા સબંધ હી સહણુ કરવા. એ જ बात नाथेना सूत्रपाठ द्वारा अष्टरी -'नश सोमस्स वहा बिमामरायाणीमो भाभियस्या' हेवानुं तात्पर्य मे छे है वरुणुना विभाजनुं तथा वरुनी शधानीनु समस्त उथन - शोभना विभाना खाने सोमनी शन्धान प्रभाते सम 'जात्र पासासा' का सही पर्यन्तनु समस्त न च सोमनी शवानीन दासप्रभावे सभ ''नवरं ' ते भन्ने थ्येने विशेषता छेते 'नाम नाज ३४ नामनी अपेक्षा ते वनमा कया सोमनु नाभ ખાતે તા આ વર્ણનમાં વઝુનું નામ મૂકવું હવે ખરુણુની ખાનામાં રહેનારા
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