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मगरतीय 'असामा' अस्मृताः मनोगोरा, 'भविष्णाया' भरिझाता भवशिाना विपपीभूता अपि न मात, 'अम्पाया' इत्यारभ्य 'अविष्णाया' ति पर्यन्ता सर्वे मामस्य अविगिता न भवन्ति पिन्त सर्वे तदनानविषयीभता सन्ति । अध न केवल ते सामस्पेवारिसाता अपित मोमपरिवारभूतानामपि नाविमाता इत्याह-'तसिं वा' तेपण या 'सोमपाइयाण देवाण' सोमशामि पाना देवाना न तेऽविज्ञाता स्पर्ष , अध सोमम्य अपत्यस्येनाभिमतान प्रान भतिपादयितुमार-'मफम्म ण' शक्रम्य खलु 'टविंदम्स टवरणी' देवन्द्रस्य देवराजस्य 'सोमम्स महारणो' सोमस्य महाराजम्य मे यक्ष्यमाणा 'भाषा' अश्रुत भी नहीं होते है । 'अस्सुया' अमृत-मनके अगोचर भी नहीं होते है । 'अविण्णाया' मोम के अवधिज्ञान आदिके अविषय भूत मी नहीं होते है । है । तात्पर्य यह है कि 'अण्णाया' पदसे लगाकर 'अविष्णाया' पद पर्यन्त मय सोमरोकपालके मारा अविदित अजात नहीं रहते है किन्तु उमफे ज्ञानके विपयभूत ही वे सप रात है । ये सप ग्रहोंपद्रवादिजन्य परिणाम सोम पो ही अधिरित नहीं रहते है, फितु सोमके परिधारभूत जो देष है उभी ये सब सात ही राते है-यही पात 'तेसिं चा सोमफाइया ण' इत्यादि सूत्रपर्दो शरा व्यक्त की गई है । अर्थात् सोमकायिक देघोंसे भी वे अविज्ञात नहीं है । अप सूत्रकार इस पोतको प्रकट करते है कि सोमने जिन प्रदोको अपत्यादिरूपसे माना है वे ये हैं-'सकस्स ण देविंदस्म देव रणो' देवेन्द्र देषराज शक्रके 'सोमस्स महारण्णो' साममहाराज के मसुत पर खाता नयी, 'भस्सया' भृत-मनधी समन्नयनी वा सोता नया 'अम्बिणाया' सामना मिशान RIGना विभूत पर खाता नयी पार्नु તાત્પર્ય એ છે કે એ સઘળા પાતે સોમ પાલને જ્ઞાત હોય –એથી તે અજાણ છેવા નથી ઉપરોકત સઘળા કપાતા અને ઉત્પાત જન્ય પરિણામોથી સ્રોમ લોકપાલ તે અજ્ઞાત હેત નથી, પણ સોમના પરિવાર ૨પ દેવો છે તેઓ પણ તેમનાથી અજ્ઞાત હોતા નથી એટલે મામિ દેવે પણ તેમનાથી અજ્ઞાત હોતા નથી એક पाव सूत्र नयन स्वपटी मारा 482 सेसि मा सोमकाया ' ઇત્યાદિ
' હવે મોમના સ તાના૫ છે ? મનાય છે તે નીચે બતાવ્યાં – नदेरिदस्सो देवरव्णो' RIN Ainma (सोमस्स मारणो'