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मगपतीने गोयमा ! उप्पएज्जा' इन्त, गोतम ! उत्पतेत, हे गौतम ! अनगारः खलु भावितात्मा विकुर्वणया क्रियास्ततेकपास्थितध्वजयुक्तपताकाधारि पुरूपाकारस्वस्वरूपेणोध्यमुत्पतितुं समर्थः गौतमः पुनः पृच्छति-'अणगारेणं भंते !' इत्यादि' हे भदन्त ! अनगारः खलु 'मात्रियप्पा' मावि तात्मा 'कवड्याई फियन्ति कियसंख्यकानि 'एगओ पडागा हस्यकिबगयाई एकतः पताकाहस्तकृत्यगतानि एकपावलम्बिध्वजयुक्तपताकाधारिपुमपाकाराणि 'रूबाई' रूपाणि 'विउवित्तए पभू?" विकुर्वित विकुर्वण या निप्पादयितुं प्रभुः समर्यः ? भगवानाह'एवंचेव जाय' एवं चैव यावत् पूर्वोक्तवदेव सर्व बोध्यम् । विकुबिम वा व्यकुर्वीद वा, विकुन्वति वा' विकुर्वति वा उड सकता है ? इसका उत्तर देते हुए प्रभु कहते है कि-'हंता उप्पएन्जा' हां उड सकता है अर्थात् हे गौतम ! भावितात्मा अनगार अपनी विकर्षणा शक्तिसे निष्पन्न किये गये हाथो में एक पाच में स्थित ध्वजावालो पताका को धारण करनेवाले पुरुष के आकार में बने हुए अपने वैक्रिय स्वरूपसे आकाशमें ऊँचे उठ सकता है। गौत्तम पुनः प्रभुसे पूछते हैं-अणगारे णं भंते !' हे भदन्त ! अनगार जो 'भावियप्पे' भावितात्मा है 'केवइयाई' वह कितने ऐसे रुवाई रूपों को 'एगओ पडागाहत्यकिचगयाई कि जिन्होंने एक पार्श्व में ध्वजयुक्त पताका को धारण करनेवाले पुरुषों के जैसा अपना विक्रियाजन्य आकार बनाया है .'विउवित्तए पभू' बनाने के लिये समर्थ हो सकता है ? इसका उत्तर देते हए प्रभु कहते है कि हे गौतम ! 'एवं चेच जाव' इस विषयमें उत्तररूप कथन पहिले की હાથમાં ધારણ કરી હોય એવા પુરુષ આકારના પિતાના વક્રિયરૂપથી, શું ભાવિતાત્મા અણુગાર આકાશમાં ઊંચે ઉડી શકે છે?
उत्तर--हता. उपएज्जा' गौतम ! (भावितामा मासु॥२ मे तुं પિતાનું વૈક્રિયરૂપ બનાવીને આકાશમાં ઊંચે ઉડી શકે છે.
प्रश्न-'अणगारेणं भंते ! भात्रियप्पे केवइयाई रुवाई एगओपडांगाहत्यकिचगयाई विउवित्तए पभू? Meral &ायमा बयुत पाय श હિય એવાં કેટલાં ય પુરુષ રૂપોનું, ભાવિતાભાં અણગાર તેની વૈક્રિય શકિતથી નિર્માણ કરી શકે છે?
त्तर-एवं चेव मा भने २: 10 बडे प्रानना STR प्रमाणे : સમજ કયાં સુધી તે ઉત્તરને સૂપા મહેણું, કરવે તે સમજાવવા માટે કહ્યું છે કે,