________________
७०२
भगवतीस्
स्थानांत ( तस्य स्थानस्य वा ) आलोचितमतिक्रान्तः कालं करोति, उपपद्यते ? गौतम 1 अन्यतरेषु अनाभियोगिकेषु देवलोकेषु देवतया उपपद्यते, तदेव भदन्त 1 तदेव भदन्त । इति ।
गाथा - खी, असि, पताका, यज्ञोपवीतत्र भवति बोध्यम् । पर्यस्तिका, पर्यङ्कः अभियोगो विकुर्वणा मायी ॥ ०२ ॥ जाता है । (अमापी णं भंते ! तस्स ठाणस्स आलोइयपडिते काल करे, कहिं उचव) हे भदन्त ! अमायी जो अनगार होता है वह उस स्थानकी आलोचना करता है और प्रतिक्रमण करता है सो वह भर कर कहाँ उत्पन्न होता है । (गोयमा ! अण्णयरेसु अणाभियोगि ए देवो देवताए उववजह ) हे गौतम! अमायी अनगार उस स्थानकी आलोचना और प्रतिक्रमण करके काल अवसर काल करता है इसलिये वह अनाभोगिक जाति के देवों में देवरूप से उत्पन्न हो जाता है । (सेवं भंते! ति) हे भदन्तं ! जैसा आपने कहा है वह ऐसा ही है - हे भदन्त वह ऐसा ही है ।
( गाहा ) गाथा - ( इत्थी असि पडागा, जण्णोवहए, य होइ योधव्वे, पल्हत्थिय पलियं के अभियोगविकुव्वणा मायी) स्त्री, तलवार, पताका, यज्ञोपवीत (जनोई) पालथी - अर्धपद्मासन, पर्यकासन, इन सबके रूपोंको अभियोग एवं इनकी विकुर्वणां संबंधि विचार इस उद्देशक में
देवश्चे उत्पन्न थाय छे. ( अमायी णं भंते ! तस्स ठाणस्स आलोइय पडिक्कते कालं करेड, कर्हि उववज्जइ) हे महन्त । सभायी अगुंगार ते स्थाननी (તેને તે પ્રવૃત્તિથી લાગેલા દોષાની ) આલેચના અને પ્રતિક્રમણ કરે છે. કાળધમ याभवानी अवसर भावे त्याने आज भाभीने ते क्ष्यां उत्पन्न थाय छे ? ( गोगमा ! अण्णयरेसु अणाभियोगिएसु देवलोएस देवत्ताए उववज्जइ) हे गौतम! समायी અણુગાર તે સ્થાનની આલેચના અને પ્રતિક્રમણ કરીને કાળ કરવાને અવસર આવે ત્યારે કાળ કરે છે. તે કારણે તે અનાભિમાગિક જાતિના દેવામાં દેવરૂપે ઉત્પન્ન થાય છે. (सेवं भंते! सेवं भंते । त्ति) के महन्त ? - आपनी बात सर्वथा सत्य है. है હું બદન્ત આપની વાત ચયા છે..
(गाहा) गाथा - (इत्थी अंसि पडागा, जण्णोवइए, य होइ बोधव्वे, पल्हथिय पलियंके अभियोग विकुव्त्रणा मायी) स्त्री, तसंवार, पता, यज्ञोपवीत (?नोध) पसांडी (अर्धपद्मासन), धर्म असन ते सौना इयोना तथा अभियोग अने