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ममेयचन्द्रिका टीका श. ३उ. ६.१ अमायिनोऽनगारस्य विकुर्वणानिरूपणम् ७४९ नो खलु एषा वाराणसी नगरी, 'णो खलु एस अंतरा एगे जणवयवग्गे' नो खलु एषः, अन्तरा - मध्ये एको जनपदवर्गों वर्तते, वस्तुतस्तु 'एस खलु ममं' एप खलु मम 'वीरियलद्धी' वीर्यलब्धिः 'वेडन्नियलद्धी' वैक्रियलब्धिः, 'ओहिनाणलद्धी' अवधिज्ञानलब्धि:, 'इड्ढी' ऋद्धिः, जुत्ती' द्युतिः, 'जसे ' यशः 'बले' वलम्, ' वीरिये ' वीर्यम्, 'पुरिसकारपरक्कमे ' पुरुपकारपराक्रमः, पुरुषार्थः प्रतापः 'लडे' लब्धः, 'पत्ते' माप्तः ' अभिसमन्नागए ' अभिही है । 'एस खलु ममं वीरियलद्धी, वेडन्वियलद्धी ओहिणाणलद्धी, किन्तु यह तो वास्तव में मेरी वीर्यलब्धि है, वैक्रियलब्धि है, और अवधिज्ञानलब्धि है । तात्पर्य कहने का यह है कि वह भावितात्मा अमायी अनगार ऐसा विचार करता है जब वह राजगृह नगरकी विकुर्वणा करता है कि यह सच्चा राजगृह नगर नहीं है - यह तो मेरी विकुर्वणो द्वारा निष्पन्न हुआ एक खेल जैसा है । इसी प्रकार जब वह वाणारसी एवं विशाल जनपद समूहकी त्रिकुर्वणा करता है तब भी उसकी विचारधारा ऐसी ही रहती है । इसी तरहसे जब वह राजगृह नगरकी विकुर्वणा करके तगतरूपोंको, वाणारसी नगरी की विकुर्वणा करके तगतरूपोंको जानता है तब उन्हें अपने द्वारा विकुर्वित किया हुआ ही जानता है । ये यथार्थ हैं - अविकुर्वित है - ऐसा नहीं जानता है । 'इइढी, जुत्ती, जसे, बले, वीरिए, पुरिसक्कारपरक्कमे लद्धे पते अभिसमण्णागए' ऋद्धि, द्युति, यश, बल, वीर्य, पुरुषकार पराक्रम નગર પણુ નથી, વાણુારસી નગરી પણ નથી, અને તે મની વચ્ચે આવેલા विशाल कनयह समूह या नथी. 'एस खलु ममं वीरियलद्धी, वेउच्चियलद्धी, ओहिणाणली ' पशु :खा तो वास्तवमां भारी वीर्य सम्धि, वैम्यिसन्धि भने અવધિજ્ઞાન લબ્ધિને પ્રભાવે ખન્યું છે તે ભાવિતાત્મા અણુગારની વિચારધારાનું તાત્પય એ છે કે- આ સાચું રાજગૃહ નગર નથી. આ તે મારી વિણા કિતથી રચાયેલુ રાજગૃહ નગર છે. આ સાચુ વાણારસી નથી પણ મારી વિણા શક્તિથી રચાયેલ વાણારસી છે. આ સાચું જનપદ સમૂડ નથી, પણ આ તે મારી વૈક્રિય શક્તિથી રંચાચૈલ જનપદ સમૂહ છે. આ રીતે તે અણુગાર તે રૂપાને વૈક્રિયરૂપા તરીકે જ એળખે છે. તે વિકૃતિ રૂપાને તે અણુગાર યથાર્થરૂપે) તરીકે માનતા નથી. તે તે એમ सभने छे ट्ठे 'इड्ढी, जुत्ती, जसे, बले, वीरिए, पुरिसक्कारपरक मे लद्धे, पत्ते, अभिसमण्णागये ' भें ने ऋद्धि, बुति, यश, मज, वीर्य भने पुरुषार पराभ