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भूता', भनार्या, ये चाप्यन्ये तथामारा. न ते शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराज सोमस्य महारानस्य अज्ञाताः, अष्टा, अभुता, अस्मृताः, भविज्ञाताः, पे ar treatfunrat देवानां शक्रस्प देवेन्द्रस्यः ठेवराजस्य, सोमस्य महाराजस्य इमे यथाsपस्या, अभिज्ञाता' अभवन्, तद्यथा अङ्गारक, विचाগक', लोहिताक्षः, शनैश्वरः, चन्द्र, सूर्यः, शुक्र, बुध, बृहस्पति, राहु, शक्रस्य
सदाहावा, पाणयग्वया, जणक्ग्वथा घणवम्वया, कुलक्ष्मया, बसण भूया, अणारिया) सवर्तकपयन गामदारयावत् सुन्निवेशशह, प्राजक्षण, जनक्षय, धनक्षय, कुलक्षय, व्यसनभूत, अनार्य-पापभूत, तथा (जे यावणे तप्पगारा ण ते सक्कस्स देविंदस्म देवरण्णो मोमस्म महा रण्णो अनया, अट्टिा, असुया, अस्सुया, अविष्णाया) इसी प्रकारके और भी सप जो उपद्रव हैं वे देवेन्द्र देवराज शफके लोकपाल सोमसे अज्ञात नहीं है, अदृष्ट नहीं है, भयुत नहीं है, अस्मृत नहीं है, तथा अविज्ञात नहीं है । (तेर्मि या सोमकाहयाण देवाण सबस्स नं देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारष्णो हमे अहायचा अभिष्णाया होत्या) अपषा उन सोमकायिक देवोंसे ये मम पातें अदृष्ट नहीं है, अभूत नहीं है, अस्मृत नहीं है, अविज्ञात नहीं है । देवेन्द्र देवराज शतके लोक पाल सोममहाराजको ये देव अपत्यरूपसे अर्थात् पुत्रस्थानीय है अभिमत है । (तजहा) वे देवये हे (इंगालए, विपालए, लोहियक्ले, सणिबरे, चदे, सूरे, सुक, हे, यहस्सई, राह) अगारक- मंगल, विकोलिक, दाहावा, जाव सनिषेसदाहाह षा, पाणक्खया, जणक्स्वया घणक्स्वया, कुलक्खमा, बसणन्भूया, अणारिया) सवर्त४ पवन, श्रमहारथी भाडीने सनिवेश क्षम नक्षय धनक्षय, भुलक्षय, व्यसनभूत, अनार्थ- पायभूत तथा (जे यामण्णे वह पगाराण ते सक्क्स्स देविंदरस देवरण्णो सोमस्स महारष्णो अम्नया, यदिट्ठा, असुया, अस्सुया, अविष्णाया) मा अमारना भी पशु ने उपद्रवो था ते વેન્દ્ર, દેવરાય થકના વૈકપાલ સોમ મહારાજથી અજ્ઞાત. અદૃષ્ટ, મદ્ભુત, અસ્મૃત भने अविज्ञात होता नथी ( तेसि वा सोमकाइयाण देवाण सम्फस्स व देविंदस्स देरणा सोमस्स महारष्णो इमे महावना अभिगाया होत्या ) तथा देवेन्द्र, દેવરાજ ક્રના લેાકપાલ સામ મહારાજના પરિવાર ૨૫ (સ તાનરૂપ) સામકાકિ વોથી પણ એ વાત અજ્ઞાત, ખદષ્ટ "શ્રુત અમૃત અને વિજ્ઞાત હોતી નથી (૪ મ) देवो नीचे प्रभा (इगालप, बियाबए, सोडियमस्ले, समिचरे, पदे, सुरे, सुक्के, जुई, इससई, राहू) २४ [भस], विद्वानि बोडिताक्ष
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