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मगबठीयले सः 'अण्णयरेस' अन्यतरेपु अन्यतमेषु इत्यर्थः 'आमियोगिए' मामियोगिकेषु 'देवलोयेमु' देवलोकेषु, अमुरकुमारादि-अच्युतान्तेषु देवलोकेषु 'देवताए' देवतया 'उववन्जर' उपपधते, त्याच आमियोगिकदेवा अच्युतान्तदेवलोक उत्पधन्ते इत्याशयेन 'अन्यतरेषु' इत्युक्तम् । एकत्र विद्यादिलन्ध्युपजीवी भावितात्मा अनगारः अभियोगमायनां कुर्वन आभियोगिकदेवेषु जायते तदुक्तम्-'मंता-जोगं काउं भूकम्मं तु जे पउंति, साय-रस-इहिदहेउ अभियोग भावणं कुणई' मन्त्रायोगं कृत्वा भूतिकर्म तु यः प्रयुक्ते, शात-रस-दिहेतुम् आभियोगिकी भावनां करोति' अर्थात् मुख-स्वाद-समृद्धिमाप्त्यर्थम् मन्त्रसाधनां . विशिष्टौपधिसेवन, भूतिकर्म च भयुञ्जानः पुरुषः आमियोगिकी भावनां करोति उत्तर देते हुए प्रभु कहते हैं कि-गोयमा' हे गौतम ! अण्णयरेसु आभियोगिएल देवलोगेसु देवत्ताए उबवजई' वह मायी अनगार अन्यतम आभियोगिक देवलोकोंमें असुरकुमार आदिसे लेकर अच्युः ततक के देवलोकों में से किसी एक देवलोक में देवरूपसे उत्पन्न होता है। आभियोगिक देव अच्युततक के देवलोकमें उत्पन्न होते है-इसी अभिप्राय से यहां 'अण्णयरेसुसा पद कहा गया है। विद्या आदि लन्धिसे उपजीवी यह भावितात्मा अनगार अभियोग भावनाको करता हुआ आभियोगिक देवोंमें उत्पन्न हो जाता है। कहा भी है
'मंता जोगं काउं भूइकम्मं तु जे पजे ति ।
सायरस इढिहे अभियोगं भावणं कुणइ ॥ इस गाथा का भावार्थ इस प्रकारसे है कि जो पुरुष सुखकी, स्वाद की और समृद्धि की प्राप्ति के लिये मंत्रकी साधनाको, विशिष्ट प्रकार प्रश्न -AI प्रभाये SriR मापे 'गोयमा ! गौतम ! ' अण्णेयरेस आभि ओगिएम देवलोगेसु देवत्ताए उववज्जइ' ते भाथी सगार मन्यतम, मालि. ગિક દેવલેકેમ–અસુરકુમારથી લઈને અગ્વત પર્યરતના દેવલેકમાંના કોઈપણ એક દેવલોકમાં દેવરૂપે ઉત્પન્ન થાય છે. આલિયોગિક દેવ અય્યત પર્યન્તના દેવલોકમાં Gपन्न थाष छ, मे हा भाटे 8 'अण्णयरेस' यानी प्रयोग या छे. विघi આદિ લબ્ધિથી ઉપજાવી તે. ભાવિતાત્મા અણુંગાર અભિગમાં પ્રવૃત્ત થવાને કારણે माभियोग वामi Sun थाय छे ४यु ५४ छ, . ... 'मंता जोगं काउं भूइकम्मं तु जे पउजेति।... : - F..., . . . सायरसइढिहेउं अभियोग भावणं कुणइ ::: :.
और यातायनाय प्रभाव छ पुरुष सुमती, वाहन मन