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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३३.५ २.२ अभियोगस्याभियोगिकस्य निरूपणम् ७०१ पराशररूपं वा, स भदन्त ! किं मायी विकुर्वति ? अमायी अपि विकुर्वति ? गौतम! मायी विकुर्वति, नो अमायी विकुर्वति अमायी भदन्त ! तस्य स्थानस्य वा अनालोचित प्रतिक्रान्तः कालं करोति, कुत्र उत्पद्यते ? गौतम ! अन्यतरेषु आभियोगिकेपु देवलोकेषु देवतया उपपद्यते, अमायी भगवन् ! तस्मात् घोडारूप है क्या ? (अणगारेणं से, णो खलु से आसे) हे गैतम! वह तो अनगार है घोडेरूप नहीं है। (एवं जाव परामररूवं वा) इसी प्रकार पराशर अष्टापदरूप तक जानना चाहिये। (से भंते ! मायी विकुम्वइ, अमायी वि विकुम्वइ) हे भदन्त ! ऐसी विकुर्वणा मायी अनगार करता है कि अमायी अनगार भी करता है ? (गोयमा ! मायी विकुन्वह, नो अमायी विकुन्वइ) हे गौतम! ऐसी विकुर्वणा मायी अनगार ही करता है। अमायी अनगार नहीं करता है। (माई णं भंते ! तस्स ठाणस्स आलोहयपडिक्कंते कालं करेइ, कहिंउववज्जइ) हे भदन्त ! इस प्रकारकी विकुर्वणा करने के बाद उसकी आलोचना
और प्रतिक्रमण नहीं करनेवाला वह मायी अनगार मर कर कहाँ उत्पन्न होता है ? (गोयमा! अण्णयरेसु आभियोगिएसु देवलोगेसु देवत्ताए उववनइ) हे गौतम ! इस प्रकारकी विकुर्वणा करके आलो. चना और प्रतिक्रमण नहीं करनेवाला अनगार काल करे तो कोई एक आभियोगिक जाति के देवलोकों में देव के रूपमें उत्पन्न हो 3 महन्त ! शुत म॥२ मव३५ छ ? (अणगारे णं से, णो खलु से आसे) ॐ गौतम ! १ मा छे, मव३५ नथी. (एवं जाय परासरस्वं वा) પરાશર (અષ્ટાપદ) રૂપ પર્યન્તના રૂપની અભિયેજના વિશે પણ એજ પ્રમાણે સમજવું. (से भंते ! मायी विकुव्वइ, अमायी वि विकुबइ ?) 3 महन्त ! मेवी वि. વણ માયી અણગાર જ કરે છે, કે અમાથી અણગાર પણ કરે છે?
(गोयमा ! मायी विकुन्वइ, नो अमायी विकुबड) गौतम ! भायी मा२०५ मेवी विशु ४२ छ, अभायी मा॥२ ४२ नयी. (माईणं भंते ! तस्स ठाणस्स अणालोइय पडिकंते कालं करेइ, कर्हि उवबज्जइ ) 3 महन्त ! આ પ્રકારની વિક્વણુ કરીને તેની આલેચના અને પ્રતિક્રમણ નહીં કરનાર માથી म॥२ ९४ीने या पन्न याय छे ? (गायमा ! अण्णयरेसु आभियोगिएम देवलोगेसु देवताए उववज्जइ) 3 गौतम ! मा प्रा२नी विय ४शन मासायना અને પ્રતિક્રમણ નહી કરનારા અણગાર, કાલકરીને કેઇ એક અભિગિક જાતિના દેવ