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प्रमेयचन्द्रिका टी. श.३ उ.५ २.१ विकुर्वणाविशेपवक्तव्यतानिरूपणम् ६९३ "विकुचिस्संति वा' विकुर्विप्यति वा 'एवं' उक्तरीत्या 'दुहओ जण्णोवइयं द्विधा यज्ञोपवीतम् अपिद्विपाविलम्बियज्ञोपवीतधारिपुरुषाकारवैक्रियस्वरूपविषयकोऽपि आलापकः समुन्नेयः, तथा च भगवन् ! तद्यथा कश्चित्पुरुपो द्विधा यज्ञोपवीतं कृत्वा गच्छेत् एवमेव अनगारोऽपि भावितात्मा द्विधा यज्ञोपवीतकृत्यगतेन आत्मना अर्ध्वम् उत्पतेत् ? इति गौतमप्रश्नः हन्त, गौतम ! त्वदुक्तरीत्या स उत्पतेत् इति भगवतः समाधानम् , ततश्च हे भगवन् ! अनगारः खलु 'विकुर्वणाशक्ति से रचना की है, न करता है और न आगे भी
ऐसे रूपोंकी वह रचना करेगा ही-यह तो केवल ऐसे रूपों को निर्माण करने की उसकी शक्ति मात्रका प्रदर्शन करने के लिये कहा गया है । इत्यादि रूपसे सय कथन पहिले जैसा समझना चाहिये । 'एवं दुहओ जण्णोवइयं वि' इसी तरह से दोनों कंधो पर लटकते हुए जनेऊवाले पुरुप के आकार के जैसे विक्रियाजन्य स्वरूप के विषय में आलापक जानना चाहिये । जैसे-हे भदन्त ! कोई पुरुप अपने दोनों कंधो पर जनेऊ लटका कर चलता है-इसी तरह से भावितात्मा अनगार भी क्या अपनी वैक्रियशक्ति से निष्पन्न किये गये दोनों कंधो पर जनेऊको धारण करनेवाले पुरुप के आकार जैसे आकार से आकाश में ऊँचे चलता है ? इसका उत्तर देते हुए प्रभु कहते है कि हे गौतम ! जैसा तुमने पूछा है भावितात्मा अनगार उस रीति से आकाश में ॐ चल सकता है। इसके बाद फिर गौतम इसी विषय में प्रभुसे प्रश्न करते हुए कहते है કરશે પણ નહીં. તેની શક્તિનું નિરૂપણ કરવાના આશયથી જ ઉપરની હકીકત લખवामां आवे छे छत्यादि समस्त थिन पडे४ा भु सभा. 'एवं दुहओ जण्णोवइयं वि' मने मेरा पारी पुरुष३पाना विषयमा ५ मे प्रा२न! પ્રશ્નોત્તરે સમજવા. તે પ્રશ્નોત્તરે નીચે પ્રમાણે બનશે.
પ્રશ્નહે ભદન્ત ! જેવી રીતે કેઈ પુરુષ તેના બન્ને ખભા પર જનોઈ ધારણ કરીને ચાલે છે, એવી જ રીતે પિતાની ક્રિય શક્તિ દ્વારા બન્ને ખભા પર જઈ ધારણ કરી હોય એવાં પુરુષ આકરનું, નિર્માણ કરીને શું ભાવિતાત્મા અણુગાર આકાશમાં ઊંચે ઉડી શકે છે?
ઉત્તર-હા, ગૌતમ ! એવા વક્રિય પુરુષ આકારે ભાવિતાત્મા અણગાર આકાશમાં ઊંચે ઉડી શકે છે. ત્યાર બાદ એજ વિષયમાં ગૌતમ સ્વામી બીજો પ્રશ્ન કરે છે