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.. . भगवतीको पेपा द्रव्याणां तानि गल्लेश्यायाः सम्पदानि 'दयाई द्रव्याणि परिआइना' पर्यादाय भावपरिणागेन परिगृह्य काल मरणम 'कोर' करोति प्राप्नोति 'तल्ले सेस तफ्लेश्येपु नारफेतु स 'उववई उपपद्यते जायते प्रकृते नैरयिकार्यमाह 'जहा' तपथा-'काहले सेमु या' कृष्णलेयेपु या, कृष्णा लेश्या येषां तेषु 'नीललेसे या नीललेश्येषु वा, : पूर्ववत्समासः काउलेस वा' फापोतलेश्येपु वा, अर्थात् एवं प्रकारेण 'जसमजा. टेस्सा' यस्य या लेश्या भवति अमुरकुमारादेर्या - कृष्णादिका लेश्या सा लेश्या रास्याएरकुमारादे भणितव्येति । सा 'तस्स भाणियबा' तस्य भणितव्या वक्तव्या अध ज्योतिष्क की है वे यल्लेश्य हि-मो जिन लेश्याओं से सम्बद्ध दलाई' द्रव्योंको 'परियाइत्ता' भाव परिणाम से ग्रहण करके वह जीव 'कालं करेइ' मरता है 'तल्लेसेसु उवधज्जई' उन लेशावाले नारकों में यह उत्पन्न होता है । तात्पर्य फहने का यह है कि जिस :जीव के मरते समय जिस लेश्याके परिणाम रहते हैं. वह जीव, उसी लेश्यावाले जीवों में उत्पन्न होता है । इस नियमके अनुसार जो जीच नरकगति में उत्पन्न -होनेवाला है यदि -उस जीवके परिणाम कृष्ण नील और कापोतं इन तीन अशुभ लेश्याओं में से मरते समय जिस लेश्याके होगे वह जीव उसी लेश्यायाले नारकमें उत्पन्न होगा। यदि मरते समय कृष्ण लेश्याके परिणाम हैं, तो वह मरकर कृष्णलेश्यावाले नारको जन्म धारण करेगा. और यदि नीललेश्याके परिणाम हैं मरते समय तो मरकर नील लेश्यावालों में उत्पन्न हो जायगा और यदि कापोत लेश्या के मरते समय, परिणाम है, तो वह मरकर- कापोतलेश्यावलि नारमें उत्पन्न हो जायेगा । एवं जो जस्स लेस्सा सा तस्स भणि: दव्य अड ४शन. भर पाने छ, 'तल्लेसेसु उपवज्जत सश्यावी नामा ઉત્પન્ન થાય છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે જે જીવન મરતી વખતે-જે વેશ્યાના પરિશામ રહે છે. તે લેશિયાળા માં તે ઉત્પન્ન થાય છે. મરતી વખતે તે જીવનમાં પરિણામ કણ નીલ-અને-કાપિત એ ત્રણલેશ્યાઓંમાંથી જે વેશ્યાનાકાય છે તે લેયાધાળાનાકમાં તેજી ઉપાડ્યું છેજો મરતી વખતે કુષ્ણલેશ્યાનાં પરિણામ હોય તે તે જીર્ણ લાવાળનારમાં ઉત્પન્ન થાય છેજે મરતી વખતે નીલ લેસ્થાનાં પરિણામ હોય તો તે જી. નીલ શ્યાવાળા નારકમાં ઉપન થશે અને જે મરતી વખતે કાપત સ્થાન પરિણામ હશે તે સે જીવ મરીને કાપત अश्या HIRI, GY. यय एवं जा जस्स लेस्सामा तस्स भणियबार
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