________________
६६०
भगवतीस
तथा अस्थि स्थितमजान, अस्थिस्थित वस्तुविशेषः, 'बहली भवति' बलीभवन्ति सना भवन्ति मणीतभोजनसामर्थ्यात् 'तथा पयणुप' मतनुकं मतलं 'मंस-सोणिए' मांसशोणितं भवति, 'जे विय से' येऽपि न तस्य पानभोजनस्य 'अहा वायरा' यथावादाः यथोचित पादराः स्थूलमायाः ' पोग्गला' पुद्गलाः आहारपुद्गला भवन्ति 'ते त्रिय से' तेऽपि च तस्य पान - भोजनस्य पुद्गलाः 'परिणमंति' वक्ष्यमाणरीत्या तत्तद्रूपेण परिणमन्ति 'तं जहा' तद्यथा परिणमनमकारमाह- 'सोइंदियत्ताए' श्रोत्रेन्द्रियतया कर्णेन्द्रियरूपेण 'जात्र - फासिंदियत्ताए' यावत् स्पर्शेन्द्रियतया यावत्-स्पर्शेन्द्रियरूपेण
*
मायी भावितात्मा अनगार जो गरिष्ट भोजनका आहार करता है उस से उसकी अस्थियां और अस्थियोंकी चर्बी बहुत दृढ एवं सघन थन जाती है । यह भोजन यदि उसे कदाचित् परिपक्क नहीं होता है तो वह ऐसी औषधि आदिका प्रयोग भी कर लेता है कि जिससे वह सब अच्छी तरह से उसको पच जाया करता है । 'पयणुए मंससोणिए' मांस और शोणित- खून इसके सघन नहीं हो पाते हैं. पतली अवस्थामें रहते हैं । तथा - 'से' उस गृहीत पान भोजन के 'जे वि य अहा वापरा पोग्गला' जो भी यथा बादर आहार पुद्गल होते है 'ते विय से' वे भी उस मायी भावितात्मा अनगार के 'परिणमंति' भिन्नर रूपसे परिणत होते रहते हैं । उस प्रणीत पान भोजनके कितनेक पुद्गल 'सोइंदियत्ताए' उसकी श्रोत्रेन्द्रिय के रूपमें परिणत होते रहते है, इस से उसकी श्रोत्रेन्द्रिय बलिष्ठ और अपने कार्य पूर्णतः क्षम बनी रहती है । कितनेक उस आहार के पुद्गल ' जाव फासिंदियत्ताए ' यात्रत्
સઘન ખની જાય છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે માર્યો ભાવિતાત્મા અણુગાર જે સરસ અને સ્નિગ્ધ આહાર લે છે, તેના દ્વારા તેના હાડકાં અને ચખી ઘણાં મજબૂત અને સઘન બની જાય છે. કદાચ તેને તે ભેજન પચે નહી તે તે એવી ઔષધિને उपयोग १रे छेडे तेना द्वारा ते लालन सारी रीते पथी लय छे. 'पयणुए मंससेाणिए' તેનું માંસ અને લોહી સઘન થતાં નથી પણુ પાતળાં પડે છે. સે” તેણે ગ્રહણ કરેલા लोनना 'जे. वि य अहा वायरा पोग्गला' ने ने यथामाहर माहार चुदगल होय 'तेत्रिय से परिणमंति' ते आहार गोय हे रहे, परिशुमंता रहे
,
छे. ते प्रणीत लोभनना डेटा लो' 'सोइंदियत्ताए' तेनी श्रीद्रिय ३पे, 'जात्र