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भगवतीसरे नायमर्षः समः भनिनुमईति एतावना बारापुद्गलग्रहणमन्तरा स्यादि रूपं विकृर्षितुं न समयः, गौतमः पुनः पृच्छति 'अणगारेण मंते !' हे भदन्त ! अनगारः खलु 'मारियप्पा' मावितात्मा 'बाहिरए पोग्गरले' वामान पुद्गलान् 'परियाता' पर्यादाय परिगा 'एगं महं' एकं महद इत्यीस्वं वा' स्त्रीरूपं ना 'जाव-संदमाणिय स्वं पा' यावत्-स्पन्दमानिकारूपं वा 'विउ. वित्तए' विकुषितुम् विकुर्वणया निष्पादयितुं 'पभू' प्रभुः समर्थः ! किम् । यावत्करणाद-उपयुकं पुरुषादिरूपं संग्रायम् । भगवानाह-हंता, पभू' हे गौतम ! हन्त प्रभुः समर्थः ! गौतमः पुनः पृच्छति-'अणगारे णं भंते !' इत्यादि । हे भदन्त ! अनगारः खलु 'भावियप्पा' भावितात्मा · केवइयाई' कियन्ति 'णो इणढे समठे' हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है-अर्थात् वैक्रियपुद्गलों को ग्रहण किये विना भावितात्मा अनगार ऐसा किसी तरह नहीं कर सकता है । गोतम पुनःप्रभु से पूछते हैं कि (भावि. यप्पा अणगारे ण भंते ) हे भदन्त भावितात्मा अनगार 'चाहिरए पोग्गले परियाइत्ता' याह्यपुद्गलों को ग्रहण करके 'एगं महं एक विशाल 'इत्थीरूबंचा जाच संदमाणियस्वं वा विउन्चित्तए पभू' स्त्री रूपको अथवा यावत् स्यन्दमानिका के रूपको विकुर्वित करने के लिये समर्थ है क्या ? 'हंता पभू' इसका उत्तर देते हुए प्रभु कहते हैं-हां गौतम भावितात्मा अनगार इस स्थिति में ऐसा करने के लिये समर्थ है। विक्रियाशक्ति से रूपों को निष्पादन करना इसका नाम विकुर्वणा है। यहां पर भी 'यावत्' शब्द के पाठ से उपयुक्त पुरुषादिरूपोंका ग्रहण हआ है । पुनः गौतम प्रभु से पूछते हैं कि 'भावियप्पा अणगारे
उत्तर-'यो इण सम । गौतम ! सलवी नथी. मटर કિય પદગલેને ગ્રહણ કર્યા વિના ભાવિતામાં અણગાર એવું કરી શકતા નથી
प्र भावियप्पा अणगारेणं भंते महन्त ! भावितात्मा मगर, 'चाहिरए पोग्गले परियाइत्वा' मा पुनावाने प्रभु शने 'एगं महं' से भड। 'इत्थीरू वा जाव संदमाणियख्वं वा विउवित्तए पभू सी ३५ने અથવા પુરુષાદિ ચન્દ્રમાનિક પર્યાના રૂપને વિકૃતિ કરવાને શું સમર્થ છે?
उत्तर-ता पभू , गौतम ! विमा मामासान यह કરીને એવી વિદુર્વણા કરી શકે છે. ' ' .
Asan' ४२वी रखे alk५ स्तिथी पार्नु: निमा ४२. महा जा (થાવત) પદથી. ઉપરોકત પુરુષાદિ રૂપ પ્રહણ કરવામાં આવેલ છે,