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भगवतीमुत्रे
वा समं कर्तुम् ? गौतम । नायमर्थः समर्थः एवं चैत्र द्वितीयोऽपि आलापकः, नवरम् पर्यादाय मथुः स दन्त ! किं मायी विकुर्वते, अमायी विकुर्वते गौतम ! मायी विकुर्वते, नो अमायी विकुर्वते, तत केनार्थेन भदन्त ! एवम् उच्यते, यावद-नो अमाथी विकुर्वते ? गौतम | मायी प्रणीतं पानभोजन aarat वमयति, तस्य तेन प्रणीतेन पान-भोजनेन अस्थिभागवाला करनेके लिये, (विसमं वा समं करतेए पभू) अथवा विषम भागवाले पर्वत को समभाग चाला करनेके लिये समर्थ हो सकता है ?) (गोयमा ! णो इण सम) हे गौतम 1 यह अर्थ समर्थनहीं है । (एवं चैव वितिओ वि आलायगो, णवर-परियाइता पंभू) इसी तरह से द्वितीय आलापक भी कहना चाहिये । विशेषता यह है कि. पुदुगलोका ग्रहण करके पहिले कहे अनुसार कर सकता है । ( से भंते ! किं माई विकुव्व, अमाई विकुव्वह ?) हे भदन्त ! मागो-प्रमत्त मनुष्य विकुर्वणा करता है, कि अमाथि अप्रमत्त विकुर्वणा करता है ? (गोयमा) हे गौतम ! (माई विकुव्वद्द नो अमायि विकुब्वह) जो मनुष्य मायिप्रमत्त होता है वह विकुर्वणा करता है । अमाह विकुर्वणा नहिं करता है ( से केणणं भंते एवं बुचइ जाव नो अमाई विकुच्चर) हे भदन्त मायि मनुष्य विकुर्वणा करता है अमायी अप्रमत्त मनुष्य विकुर्वणा नहीं करता ऐसा जो आपने कहा है- सो इसमें क्या कारण है ? (गोयमा !) हे गौतम! (माई णं पणीयं पाणभोयणं भोच्चा भोचा वामेह) मायी-प्रमत्त-प्रणीत (गोयमा ! णो ण समट्टे) हे गौतम! मेधुं मनी शस्तु नथी. बाह्ययुद्धसोने अणु ईर्ष्या सिवाय ते अगार से प्रभारी शतो नथी, ( एवं चैव वितिओ विआलागो - वरं - परियाइता पभू ) मे प्रभा जीने आसा या अहेवा જોઇએ. વિશેષતા એટલી જ છે કે બાહ્યપુદ્ગલેાને ગ્રહણ કરીને તે અણુગાર એ પ્રમાણે કરી शुभ्वाने समर्थ छे. (से भंते ! - किं माई विकुब्वड़, अमाई विकुव्वर 2 ) डे ભદન્ત ! માથી અણુગાર વિધ્રુવ ણા કરે છે કે, અમાય અણુગાર વિકણા કરે છે? (गोयमा !) गौतम (माई विकुव्वइ, नो अमाई, विकुब्बई) भायी - प्रभत्त मनुष्य ४ विदुर्वाष्या ४रे छे, अमाया - अभ्रभक्त भनुष्य विभुर्णा १२ता - नथी. (से केणट्टेणं भंते एवं बुच्चइ जात्र नो अमाई त्रिकुब्बई) के लहून्त ! था रखें आप એવું કહેા છે કે માથી મનુષ્ય વિધ્રુવ ણા કરે છે, અમાર્યા મનુષ્ય વિકલČણા કરતા નથી ? (गोयमा ।) के गौतम! (माईणं पणीयं पाणभोयणं भोच्चा ( भोचा वामेइ)
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