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प्रमेयचन्द्रिका टी. श. ३० उ. ४ म्र. ५ अणगारविकुत्रणा निरूपणम्
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अस्थिमज्जा बलीभवन्ति, प्रतनुकं मांस- शोणितं भवति, येऽपि च तस्य यथा चादरास्तेऽपि च तस्य परिणमन्ति तद्यथा - श्रोत्रेन्द्रियतया, यावन्- स्पर्शेन्द्रियतया, अस्थि-अस्थिमज्जा - केशश्मश्रु - रोम - नखतया, शुक्रतया, शोणिततया, अमायी रूक्षं पाऩभोजनं भुक्त्वा भुक्त्वा नो वमयति, तस्य तेन भक्षेण पान - भोजनेन अस्थि अस्थिमज्जा प्रतनूभवन्ति चहलं मांस- शोणितम्, पान भोजनको घृत आदि गरिष्ठ पदार्थके मेल से विकाशदार बने हुए आहार को - अतिप्रमाणमें खा खा करके वमन करता है। (तस्स णं तेणं पणीपणं पाणभोयणेणं अट्टि - अट्टिमिंजा, बहली भवंति ) इससे उस प्रणीत-गरिष्ठ भोजन से उसके हाड, हाडकी मज्जा, दृढ-मजवून होती है (ए मंस सोणिए भवइ) मांस और रक्त प्रतनु होते हैं । (जे विय से अहा वायरा पोग्गला. ते वि य से परिणमंति) तथा उस आहार के जो यथावादर पुद्गल है, वे भी उस उसरूपसे उसके परिणत हो जाते है (तंजा) जैसे (सोइंदियत्ताए जाव फासिंदियत्ताए) श्रोत्रेन्द्रियरूप में यावत् स्पर्शनेन्द्रियरूपसे (अहि, अहिमिंज, केस-मंसु रोमनहत्ताए, सुक्कत्ताए, सोणियत्ताए) अस्थिरूप से - हाडरूप से अस्थिमजाप से, केशरूपसें, इमश्ररूपसे, रोमरूप से नखरूप से, विर्यरूप से और खूनरूप से वे आहार के पुद्गल परिणमित हो जाते है । ( अमायी णं लूहं पाणभोयणं भेोच्चा भोच्चा णो वामेइ, तस्स णं तेणं માયી–પ્રમત્ત મનુષ્ય પ્રણીત આહાર પૈયને—ધી આદિ સ્નિગ્ધ પદાર્થને ઉપયોગ કરીને तैयार रेसा शिडाशवाणा आहारने- पूण या जाने वमन उरे छे. (तस्सणं तेणं पणीएणं पाणभोयणेणं अट्टि - अट्ठिमिंजा बहली, भवंती ) ते १२ ते प्रशीत लोन्ननथी तेनां हाउ भने अस्थिभल्ल भन्न्भूत ने छे. (पयणुए मंस - सोणिए भवइ) ने तेनुं मांस भने रुधिर प्रतनुं (यात) मते हे. (जे त्रिय से अहो वायरा पोला, ते वि य से परिणमंति) तथा तेना ते आडारना यथाणाहर युगसों छे, तेथे पशु ते ते उसे परित यह लय े. (तंजहा प्रेम : (सोदियत्ताए जात्र फासिंदियत्ताए ) ते युगलो श्रोत्रेन्द्रियर्थी श उरीने स्पर्शेद्रिय पर्यन्तनी पाये द्रिया ३ये परिभे छे. (अट्ठि) अट्ठमिंज, केस, - मंतु, रोम, नहत्ताए, मुक्कत्ताए, सोणियत्ताए) तथा ते भाडारनां युगला शास्थि३ये, अस्थिमन्त्लइये. उशइये, नमध्ये, शेमये, वीर्यश्ये भने ३धिर३ये परिशुभे छे.. ( अमायणं ऌहं पाणभोयणं भेोच्चा भेोच्चा णो वामेह, तस्सणं