________________
प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३ उ.४८.३ पारिणामिकवलाहकवक्तव्यतानिरूपणम् ६३१ गन्तुम् ! प्रभुः । भगवानाह 'हंता, पभू' हन्ते सत्यं, प्रभुः समर्थ स योजनानि गन्तुम् । गौतमः पुनः पृच्छति-से भंते । इत्यादि । हे भगवन् ! स मेघः (किं) किम् 'आयड्ढीए गच्छइ' अत्मद्धर्या स्वशक्या गच्छति ! अथवा 'परिइडीए गच्छइ ? परद्धर्या गच्छति किम् भगवानाह-गोयमा । हे गौतम ! नो आयबढीए गच्छइ' नो आत्मद्धर्या गच्छति, तस्याचेतनतया विवक्षितायाः स्त्र शक्तेरभावात् न आत्मद्धर्या स गन्तुमर्हति, वायुना देवेनवा प्रेरितस्तु गन्तुं समर्थः इत्यभिप्रायेणाह-'परिड्ढी गच्छइ' परद्धा अन्यसामर्थ्येन पवनादि योजनों तक जानेके लिये स्थायी कैसे रह सकता है । इस विपय में प्रभु गौतमसे कहते हुए उन्हें समझाते हैं कि 'हत्ता पभू' हे गौतम ! हां वह मेघ स्त्रीके विशाल आकारमें परिणत होकर अनेक योजनों तक जा सकता है । अब गौतम प्रभुसे यह प्रश्न करते हैं कि भदन्त ! जब मेघ भिन्नर आकारमें परिणत होकर अनेक योजनों तक जा सकने में समर्थ है तो हम आपसे यह जानना चाहते हैं कि उसका इतनी अधिक दूरतक गमन करना अपनी निजकी शक्ति से होता है ? यही बात से भंते ! कि आयडूढीए गच्छइ, परिडूढीए गच्छइ' इस सूत्रपाठ द्वारा व्यक्तकी गई है। तब इस प्रश्नका उत्तर देते हुए प्रभु कहते हैं कि 'गोयमा' हे गौतम ! 'नो आय ड्ढीए गच्छई' वह मेघ अनेक योजनों तक अपनी शक्तिसे गमन नहीं करता है किन्तु 'परिढ्ढीए गच्छइ' परकी सहायतासे गमन करता है। 'स्वशक्ति से गमन नहीं करता' तात्पर्य ऐसा है कि यह આકારે અનેક પેજને પર્યત ગમન કરવાને તે કેવી રીતે સમર્થ બને?
उत्त२-'ता पभा गौतम ! भेध स्त्रीन। विशाल मारे परिशुभान भने જનપર્યત ગમન કરી શકે છે.
HRन-से भंते! कि आयड्ढीए गच्छा, परडीए गच्छइ ? महन्त ! મેઘ સ્ત્રીના વિશાલ આકારે પરિણમીને અનેક પેજનો પર્યન્ત જે ગમન કરે છે તે તેની પિતાની શકિતથી કરે છે, કે અન્યની શકિતથી (સહાયતાથી) કરે છે ?
Gh२ -'गोयमा । गौतम ! 'नो आयडढीए गच्छइ, परडढीए गच्छई' મેઘ તેની પોતાની શક્તિથી અનેક જનોના અંતર સુધી પિતાની શકિતથી ગમન કરે નથી, પણ અન્યની સહાયતાથી ગમન કરે છે. તે સ્વશક્તિથી ગમન કરી શકતા નથી તેનું કારણ એ છે કે તે અચેતન છે, તે કારણે તેનામાં તેની પિતાની શક્તિ તે હતી જ નથી.