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६२८ उच्छूितोदय या गलति, पतदुदयं या गमनि, समदन्न । किमला(कसी! गौतम ! पलाहकः सः, नो खलु सा श्री, एवं पुरः, अश्वः, हस्ती मरः सह मदन्त ! बलाहमा, एफ मध्व यानरूपं परिणमय्य अनेकानि योजनानि गन्तम् । यथा खोरूपं तथा मणितन्यम्, नबरम्-पफताकपालमपि, द्विधाचकालमपि गच्छति भणितव्यम् , युग्ग-गिल्लि पिल्ली शिविकास्यन्दमानिकानां तथैव ।। स ३ ।। जाता है किन्तु परकर्म से ही अनेक योजनों तक जाता है। अपने प्रयोग से यह अनेक योजनों तक नहीं जाता है, पर प्रयोग से ही अनेक योजनों तक जाता है । (ऊसिओदयं वा गच्छा, पयोदयं चा गच्छह) इसी तरह से यह ऊँची हुई ध्वजाको तरह और नहीं उडती हुई ध्वजाको तरह यह गति करता है। 'से भंते ! किं यलाहए इ थी) हे भदन्त ! वह पलाहक-मेघ-क्या स्त्री है। (गोयमा ! पलाहए णं से नो खल सा इत्थी, एवं पुरिसे, आसे हत्थी ) हे गौतम् ! पलाहक स्त्री नहीं है। इसी तरह वह पुरुप नहीं है, घोडा नहीं है, हाथी नहीं है । (पभू णं यलाहए एगं महं जाणरूवं परिणामेत्ता अणेगाई जोयणाई गमेत्तए) हे भदन्त ! बलाहक एक विशाल यान के रूप में परिणमित होकर अनेक योजनों तक जानेके लिये समर्थ है क्या? (जहा इविस्वं तहा भाणियवं, नवरं एगओ चक वालं चि, दुहओ चकवालं वि गच्छह, भाणियन्वं, जुग्ग, . गिल्लि, थिल्लि, सीया, स्यंदमाणिया णं तहेय) हे गौतम! जैसा स्त्रीरूपके
જન પન તે નથી, પણ પરકર્મથી જ અનેક જિનપર્યત જાય છે. તે પિતાના જ પ્રયોગથી અનેક યોજને પર્યન્ત જ નથી, પણ પરપ્રયાગથી જ અનેક योजना पर्यन्त नय छे. (असिभोदयं वा गच्छइ, पयोदयं वा गच्छइ ?) હે ગૌતમ! તે ઉર્વપતાકાની જેમ પણ ગતિ કરે છે, અને નહીં ફરકતી ધજાની જેમ पर गति ४२ छ. (से भंते ! कि बलाहए इत्थी !) महन! मेघ सी २५३५ छ? (गोयमा) गौतम ! (बलाहए णं से नो खलु सा इत्थी, एवं पूरिसे, आसे हत्थी): 1 मे श्री २१३५ नथी, पुरुष.१३५ नथी, अश्व २१३५ नथी भने हाथी-१३५ ५५ नथी. (पणं बलाहए एग महं जाणरूवं परिणामेत्ता अणेगाइं जोयणाई गमेत्तए) NEra ! मे मे पायान (ast) ना ३ परिभान मन यामना पन्त.rain समर्थ छ! (जहा इत्थिरवं तहा भाणियवं, नवरं एगो चकवालं.वि, दुहओ चकवालं वि गच्छह, भा. णियन्न, जुग्ग, गिल्लि, विल्लि, सीया, स्यदमाणिया गं तहेव) गौतम! श्री