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भगवतीमत्रे चिन्तितः प्रार्थितः मनोगतः संकल्पः समुदपधत-पास एपः अमार्थित प्रार्थक दुरन्तमान्तलक्षणः हीश्रीपस्विर्जितः, हीनपुण्यचातुर्दशो यद् मम अस्याम् एतदपायाम् दिव्यायां देवी, यावत् दिव्ये देवानुभावे लब्बे, माप्ते अभिसमन्वागते उपरि अल्पोत्सुक्यो दिव्यान मोगभोगान् भुआनो विहरति, एवं उस समय यह पुरन्दर-शक अपनी प्रभासे यावत् दशों दिशाओंको उद्योतयुक्त और प्रभा से युक्त कर रहा था। सौधर्मकल्प में सौधर्मावतंसक विमान में शक नामक सिंहासन पर बैठ कर यावत दिव्य भोगने योग्य भोगों को यह भोग रहा था- ऐसी स्थिति से युक्त इन्द्र को उसने देखा । उसको उस प्रकार से देखकर उस चमर को (हमेयारूवे) इस प्रकार का (अज्झथिए) आध्यात्मिक (चिंतिए) चिन्तित (पत्धिए) प्रार्थित (मणोगए) मनोगत (संकप्पे) संकल्प (समुप्पजित्था) उत्पन्न हुआ (केस णं एस अपस्थियपत्थए) अरे! यह कौन है जो अप्रार्थित-मृत्यु की चाहनावाला बना हुआ है (दुरंतपलतक्खणे) जिसके बिलकुल खराय निकृष्ट-लक्षण हैं। (हिरिसिरिपरिवजिए) लजा और शोभा से जो रहित है। (हीणपुण्णच उद्दसे) पुण्य हीन चतुर्दशी के दिन जिसका जन्म हुआ। (जं ममं इमाए एयाख्वाए दिवाए देवडीए) जो मेरे पास यह इस प्रकार की दिव्य देवद्धि के होने पर तथा (जाय दिव्वे देवाणुभावे लढे पत्ते अभिसमण्णागए) यावत् दिव्य देवानुभाव के लब्ध, प्राप्त एवं अभिसमन्वागत होने पर भी (उपि) તેજની ચારે દિશાઓને દેદીપ્યમાન તથા પ્રભાયુકત કરી રહ્યો હતો. અને સીધીક૯પમાં સૌધર્માવલંસક નામના વિમાનમાં શઠ નામના સિંહાસન પર બેસીને દિવ્ય ભેગે ભેગपतो तो. तर ५२ या प्रमाणेनी समानाने यमरेन्द्रना मनमा (इमेयारूवे) मा प्रारना (अज्झथिए) मायाभि, (चितिए) तित, (पत्थिए) प्रार्थित (म. जोगए) भनागत (संकप्पे समुप्पज्जित्था) ४६५64-1 थयो-(केसणं एस अपत्थियपत्थए) मा आएछ रेने भरवानी छ। थ छे! (दुरंतपंतलक्खणे)
aamana छ, (होर सिरि परिवज्जिए) मनी हित. (हीणपुण्णचाउद्दस )रनाम श्यहीन योशन हिवसे थयो छ, (जं ममं इमाए एयाख्वाए दिव्याए देवड्डीए) भारी पसे मा नी हिव्य
पहिावा छतi, (जाव दिश्वे देवाणुभावे लध्धे पत्ते अभिसमण्णागए) ता. દિવ્ય દેવપ્રભાવ લબ્ધ, પ્રાપ્ત અને સમન્વાગત કર્યા છતાં પણ (ઉ) જે મારા કરતાં