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५७६ . . .... . . , ... .मनाली एननादिमियासहितो जीयः आरंम्मं सारंम समारम्भं कुर्वन् आरम्मादी व मानः प्राणीभूतनीयसत्यानां दुःखोत्पादनादिना पालवयुक्तः संसारे निमजति, भन्तमियां न करोति, नत्मतिपक्षिभूतं दधान्तमाह-'अहेणं के पुरिसे' अय खलु कपिन् पुरुषः 'नीसे नावाए तस्या नायः 'सरो समंता, सर्वतः समन्तान् सर्वगागेपु भासदाराई माखमाराणि मृत्मजलनिस्सरणमार्गान् 'पिदेइ' पिधो 'पिदिषा णाना-उरिसरणपणं' पिधाय नात्सेचनकन नाउ सेवनधारा 'उदयं उसिचिना' उदकम् उत्सिम्चेव यहि निस्सारयेत् 'से एणं मंडियपुता' अय तदा नूनं निमयेन हे मण्डितपुत्र ! 'सा नावा' सा नौ तसि उदयंसि' तस्मिन उदके-जले 'उस्सितसि' उत्सित्ते निष्कासिते 'समाणंसि'. एजनादि क्रिया से समन्धित युक्त हुआ जीव आरंभ संरंभ और समारंभ करता हुआ-अर्थात् आरंभ आदि में वर्तमान होता हुआ प्राणी, भूत, जीव और सत्वों को दुःश्वोत्पादन आदि द्वारा पांच आसवों से युक्त होकर संसारमें ही दृयता रहता है अर्थात अन्तक्रिया मुक्तिको नहीं प्राप्त करता है । अय अन्तक्रिया कौन करता है इस बात्तको सूत्रंकार आगले दृष्टान्त से समझाते हैं 'अहेणं जैसे. 'केई. पुरिसे' कोइ पुरुष 'तीसे नावाए' उस नौका के 'आसवदाराई आस्रवदारोंको जलागमन छिद्रोको 'सव्यओ समंता' सप प्रकारसे और सब तरफसे. 'पिहेइ'. वंद कर देता है। 'पिहिता' घंद करके फिर वह 'णाचा उस्सि.च एणं' नाव में भरे हुए पानीको किसी वर्तन आदि से भरकर 'उदयं उस्सिचिज्जा उस नौका से उस जल को घाहर उलीच देता है। इस तरह 'से . गूणं मंडियपुत्ता'. हे मंडितपुत्र ! 'सा नावा' वह नौका અવશ્ય ડૂબી જાય છે આ દૃષ્ટાન્ત દ્વારા નીચેની વાતનું પ્રતિપાદન કરાયું છે. એજન (કંપન આદિ ક્રિયાઓથી યુક્ત જીવ, આરંભ આદિમાં પ્રવૃત્ત રહે છે. તેથી તે પ્રાણીઓ, બનો. જી અને સને દુઃખાદિ દેવામાં કારણરૂપ બને છે. આ રીતે તે પાંચે આસવોનું સેવન કરતો હોવાથી, સેંકડે છિદ્રવાળી નૌકોની જેમ, સંસારમાં ડૂબતે રહે છેએટલે કે (અન્તક્રિયા) મુક્તિ પ્રાપ્ત કરતા નથી. હવે સૂત્રકાર નીચેના દૃષ્ટાંત દ્વારા એ समलव आन्तलिया र ४२.छ। 'अहेणं के परिसे। घास भास 'तीसे नावाए आसबदाराइं" नानां मासदाराने-दान सन्चओ समंता विदेह मधा माथी ५५ ४३. 'पिहित्ता' छिद्राने पूरी धन पावा उस्सि च.. एणं उदयं उस्सिचिजा नाम बता पालीन तास 43.या भांड. माशत से णानं मंडियपुत्ता!” भाउतधुन ! सानीवा 'सिउदयसि