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समपिरमक्रियाऽमविपातिशुरसध्यानचतुर्पमेदानलेन कर्म दास दान भवत्येव । अप निष्क्रियस्येव जीवस्य सकल कर्मविध्वंसरुपा मन्तक्रिया भर तीति नौकायान्तेन भगवान प्रतिपादयति-से महानामए इयए सिया' इत्यादि । हे मण्डितपुर ! द ययानामादास्यात् 'पुण्णे' पूर्णः जलपरिपूर्णः स्याः 'पुष्णप्पमाणे' पूर्णप्रमाणः पूर्ण प्रमाणं यस्य स सर्वया जले परिपूर्णः आतटव्याप्तनलमितिमायः पदविशेषणमेतव्यम्, पुनः कीदृशः 'चोलट्रमाणे व्यपलटयन जलतरहः समुच्छलन् 'योसटमाणे विकसन् जलोट्रेक बर्द्धमानः सन 'सममरघडताए' समभरघटतया उदकपूर्णकुम्भवत् गम्भीरतया 'चिहा' तिष्ठति, अर्याद तटपर्यन्तव्याप्तात्पन्तजलगम्भीरजलाशयो वर्सते, 'हेणं केइपुरिसे' भय खलु फश्चित् पुरुषः 'वसि हरयंसि' तस्मिन् इदे 'एगं मई समुच्छिन्न क्रिया अप्रतिपाति शुक्लध्यानरूप अग्निके द्वारा कर्मरूपयाय वस्तुका दहन-विनाश-अवश्य ही होता है। अब प्रभु नौका के दृष्टान्त से यह प्रतिपादन करते हैं कि निष्क्रिय हुए जीवकी ही सकल कर्म विनाशरूप अन्तक्रिया होती है-हे मण्डितपुत्र ! से जहा नामए' जैसे कोई एक 'हरए सिया' हद-दह) हो और वह 'पुण्णे' जल से परिपूर्ण हो 'पुण्णप्पमाणे' अर्थात तटतक उसमें जल भरा हो 'वोलट्टमाणे जलकी उछलती हुई तरङ्गोसे वह उछल रहा हो, 'वोसट्टमाणे' जलकी अधिकता से वह खूब पडाचढ़ा दिखता हो, 'समभरघडताए चिठ्ठई' जल से पूर्णकुंभकी तरह वह गंमीर हो अर्थात् तटपर्यन्त व्याप्त जलसे अत्यन्त गंभीर यना हुआ ऐसा एक जलाઅપ્રતિપતિ શુકલધ્યાનરૂપી અગ્નિ દ્વારા અવશ્ય નષ્ટ થાય છે. જેવી રીતે કેઈ સળગી ઉઠે એવી વસ્તુ અરિન દ્વારા બળીને ભસમ થઈ જાય છે, એવી રીતે એવા જીવના. કર્મોનું દહન અપ્રતિપાતિ શુકલધ્યાન રૂ૫ અગ્નિથી અવશ્ય થાય છે.
* હવે નૌકાના દષ્ટાંત દ્વારા મહાવીર પ્રભુ એ વાતનું પ્રતિપાદન કરે છે કે નિશ્ચિ जननी स भक्षय ३५ मन्तष्ठिया थाय छे.' से जहानामए हरए सिया' भडितपुत्र ! वा। -शय सशर छे. 'पुण्णे ते पाथी मासु छ. 'पण्णप्पमाणे ते पालीथी ७७६ मरेछ (तभा i सुधी पाणी
छ, 'वोलट्टमाणे पायीनi soni माथी ते Kिamas . बोसदमाणे, पाथीनी अधितान दीधे त म माथु वा छ, 'समभरघडताए चिट्टई' पायाथी लरे। सनी.२ तली छ. मेटनास सुधा पहायला पाथी त मत्यन्त ला२ grय छे.) 'अहेणं के रिसे वे