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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३ उ.४ २.२ वैक्रियवायुकाय वक्तव्यतानिरूपणम्
चैकिय वायुकायवक्तव्यता प्रस्ताव:म्लम्-'पभूणं भंते ! वाउकाए एगं महं इत्थिरूव वा, पुरिसरूवं वा; हथिरूंवं वा; जाणरूवं वा; एवं जुग्ग-गिल्लि-थिल्लिसीय-संदमाणिय रूवं वा, विउवित्तए ? गोयमा! नो इणने समटे, वाउकाएणं विकुब्वेमाणे एगं महं पड़ागा संठियं रूवं विकुबइ, पभूणं भंते! वाउकाए एगं महं पडागासंठियं एवं विउवित्ता अणेगाई जोयणाई गमित्तए ! हन्ता, पभू; से भंते! किं आयड्डीए गच्छइ ?-परिड्ढीए गच्छइ ? गोयमा ! आयड्ढीए गच्छइ, नो परिड्ढीए गच्छइ, जहा-आयड्ढीए, एवं चेव आय कम्मुणावि, आयप्पयोगेण वि भाणियवं, से भंते ! किं असि
ओदयं गच्छइ, पय ओदयं गच्छइ ? गोयमा! ऊसिओदयं पि गच्छइ; पय ओदयं पि गच्छइः से भंते ! कि एगओ पडागं गच्छइ ? दुहओ पडागं गच्छइ ? गोयमा ! एगओ पडागं गच्छइ, नो दुहओ पडागं गच्छा; सेणं भंते! कि वाउकाए पडागा ? गोयमा! वाउकाएणं से; नो खलु सा पडागा ॥सू. २॥
लेकर घीजतक के ४ पदोंका संमेलन करने से ४, पत्र के साथ पुष्पादि३ पदों का संमेलन करने से ३, पुष्प के साथ, फल और बीज का संमेलन करने से २, और फलके साथ केवल बीज का संयोजन करने से एक चतुभंगी पन जाती है । इस तरह इन संघ का जोड ४५ हो जाता है | सू०१॥
(७) पाननी साधे ०५थी , , , , (८) पनी साथे था , , , २ " (૯) ફળની સાથે બીજના સંગથી
આ રીતે બધી મળીને ૫ ચતુભળી બને છે.
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॥सू.१॥