________________
६.१८
भगवतीसत्रे
गच्छति, तदयमपि गन्छति स भदन्त । किम् एतः पताकं गच्छति ! द्विभाषता छति । गोतम ! एक्तः पताकं गच्छति । नो द्विधा पताक गच्छति स भदन्त 1 किं वायुकाः पताका ? गौतम । चाकायः सः, नोखा पताका ।। ०२ ।।
टीका- चैकियारीराधिकारादाह-पभूणं भंते !" इत्यादि । गौतमः पृच्छति हे भदन्त ! पशुः खलु समर्थक 'काए, वायुकायः' ' एवं महं' एक तरह रूप करके गति करता है क्या ? (गोगमा ! ऊसिओदयं वि गच्छर, पगओदवि गच्छड़) हे गौतम । यह वायुकाय ऊँची हुई पताकाकी तरह भी रूप बनाकर गमन करता है और गिरि हुई पताकाकी तरहभी रूप नाकर गमन करता है । ( से भंते । किं एगओ पडागं गच्छ ? ) हे भदन्त ! यह वायुकाय एक दिशा में जैसी एक पताका होती है ऐसा रूप करके गमन करता है ? या दो दिशा में एक साथ जैसी दो पताकाएँ होती हैं ऐसारूप करके गमन करता है ? (गोमा) हे गौतम ! (एगओ पडागं गच्छछ, नो दुहओ पडागं गच्छ) एक दिशामें जैसी एक पताका होती है ऐसा रूप करके वह वायुकाय गमन करता है। दो दिशामें दो पताका की तरह रूप बना कर वह गमन नहीं करता है। (सेणं भंते । किं वाडकाए पडागा !) हे भदन्त ! वह वायुकाय क्या पतोका है ? (गोयमा ।) हे गौतम] ( वा उकाए णं से नो खलु सा पडागा) वह वायुकाय है-पताका नहीं है ।। सू. श उतारेसी चताना नेषु ३५ मनावाने गमन करे ? ( गोयमा !- ऊसिओदयं वि गच्छ, पयओदयं वि गच्छा ) हे गौतम । ते वायुश्य थे इसी पताકાના જેવું રૂપ બનાવીને પણ ગમન કરે છે, અને નીચે ઉતારેલી પતાકાના જેવું રૂપ नावीने पशु भन रे ( से भंते ! किं एगओ पडागं गच्छ ? ) हे लक्ष्न्त ! તે વાયુકાય એક દિશામાં રહેલી એક પતાકા જેવું રૂપ કરીને ગમન કરે છે કે એ दिशामां मेड साथै रहेली में पता नेवु ३५ अरीने गभनरे छे ! ( गोयमा ! ) हे गौतम! (एमओ पडागं गच्छइ, नो दुहओ पडागं गच्छ ) मे४ हिशाभां • રહેલી એક પતાકા જેવા રૂપે તે ગમન કરે છે, એ દિશામાં રહેલી એ પતાકા જેવું રૂપ मनावाने ते गमन ४२तुं नथी. ( से णं भंते! किं बाउका पडागा ) हे अहन्त ! ते वायुअर शुं पता छे ? ( गोयमा ) हे गौतम! (वाउक ए णं से नो खलु सा पडागा ) ते वायुप्रय वायुप्राय: है-पता नथी. सू २ ॥