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प्रमेयचन्द्रिका टी. श.३. उ.४ सू.२ वैक्रियवायुकायव्यक्तव्यतानिरूपणम् ६२१ भापामसिद्ध, थिलिः लाटदेशे यद्धिघोटकपल्ययनं तदेवान्यदेशे थिल्लिरुच्यते तद्रूप शिविका-'पालकी' इति भाषा मसिद्धम् स्यन्दमानिका स्यन्दमाना एवं स्यन्दमानिका पुरुपप्रमाणायामो जम्पानविशेपः 'विउवित्तए' विकुर्वितम् । प्रभुः समर्थ इतिमश्नः । भगवानाह 'गोयमा! हे गौतम ! 'णो इणटे समझे नायमर्थः समर्थः, त्वदुकं न संभवति, किन्तु 'वाउकाएणं' वायुकायः खलु 'विकुन्वेमाणे' विकुर्वमाणः विकुर्वणां कुर्वाणः 'एगं महं' एक महत् 'पडागासंठिअस्वं पताकासंस्थितरूपं पताकाकारशरीरत्वात् 'विकुन्नई' विकुर्वते विकुर्वणया निप्पादयति । ग्रहण किया गया है । हाथीकी पीठ पर जो चौकोरवाली बैठने की पालखी रखी जाती हैं कि जिसमें बैठनेवाले बैठते हैं उसका नाम गिल्लि है। इसे हिन्दी भापामें 'अंबाडी' कहते हैं। लाटदेशमें जिसे पलेचा कहते है और जो घोडेकी पीठ पर कसी जाती है उसीका नाम घिल्ली है । शिविका पालखीका नाम है । स्यन्दमानिका एक प्रकारका वाहन विशेप होता है जिसकी लंबाई पुरुष जितनी होती है । इस प्रश्नका उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते हैं 'णो इण? सम?' हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं हैं-अर्थात वायुकायिक जीव अपनी विक्रिया शक्तिसे इनर आकारोंको नहीं बना सकता है। किन्तु 'वाउकाए णं चिकुवेमाणे एग महं पडागासंठियं रूपं विकुबई' वायुकायिक जीव जय विक्रिया करतो है तब वह एक विशाल आकारमें पताकाने जैसा हो जाता हैं। क्यों कि इसका शरीर स्वयं पताकाके
आकार जैसा है । तात्पर्य-कहने का यह है कि वायुकाय का आकार ४ छ, तेना रे ते युज्य हाय ७. 'गिल्लि ' यानी पी8 ५२ सवा माटे रे माही गवामा माव छ तेन हि शिल्लि साहेशमा थिदिखने પાઁચા કહે છે-ગુજરાતમાં તેને ઘોડા પરનું પલાણ કહે છે. તે પલાણને (જીનને) घोडानी पी8 ५२४ाम भाव 2. 'शिविका मेट पालभी. 'स्यन्दमानिका' એક પ્રકારનું વાહન છે તેની લંબાઇ પુરુષ પ્રમાણ હોય છે. હવે સૂત્રકારઉપરોક્ત પ્રશ્નને જવાબ मायता छ । 'जो इणहे समटे गौतम ! मानतुनथी. वायुयछ तना विठिया तिथी मेवा मा मनावी शत नथी. ५ए 'वाउकाएणं विकुन्वेमाणे एगं मई पडागासंठियं रुवं विकुन्यह। वायुायि४८१ या विहिया ४२ छ ત્યારે તે એક વિશાળ પતાકાના જે બની જાય છે. કારણ કે તેનું શરીર જપતાકા જવા આકારનું કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે વાયુકાયને આકાર જે પતાકા જેવા છે,